मदर टेरेसा
ममतामयी है मदर टेरेसा,
जीवन रहा संत के जैसा,
26 अगस्त 1910 में देह पायी,
संसार में ममता लुटाने आयी।
1948 में भारतीय नागरिकता पायी,
समाज-सुधार की बयार चलाई,
आजीवन सेवा का संकल्प लिया,
परसेवा में सर्वस्व त्याग दिया।
कलकत्ता चर्च ने संत टेरेसा नाम दिया,
रोमन कैथोलिक नन बन नाम कमाया,
दीन-दुखियों की सेवा परम् धर्म माना,
लगन से काम करने का ठाना।
शांति -पुरस्कार, फाउंडेशन पुरस्कार पाया,
"पद्म श्री"आईंर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर पाया,
नोबेल पुरस्कार इनकी झोली में आया,
मानवता की सेवा का डंका बजाया।
शब्द नहीं कथन पर जोर देना है,
तन्मयता से अपना फर्ज निभाना है,
पीड़ित जनता को प्रसन्नता देना है,
टेरेसा ने जीवन भर इतना ही जाना है।
जीवन रहा संत के जैसा,
26 अगस्त 1910 में देह पायी,
संसार में ममता लुटाने आयी।
1948 में भारतीय नागरिकता पायी,
समाज-सुधार की बयार चलाई,
आजीवन सेवा का संकल्प लिया,
परसेवा में सर्वस्व त्याग दिया।
कलकत्ता चर्च ने संत टेरेसा नाम दिया,
रोमन कैथोलिक नन बन नाम कमाया,
दीन-दुखियों की सेवा परम् धर्म माना,
लगन से काम करने का ठाना।
शांति -पुरस्कार, फाउंडेशन पुरस्कार पाया,
"पद्म श्री"आईंर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर पाया,
नोबेल पुरस्कार इनकी झोली में आया,
मानवता की सेवा का डंका बजाया।
शब्द नहीं कथन पर जोर देना है,
तन्मयता से अपना फर्ज निभाना है,
पीड़ित जनता को प्रसन्नता देना है,
टेरेसा ने जीवन भर इतना ही जाना है।
रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
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