महिला समानता दिवस
सदियों से विवश है महिला
झेल रही है असमानता,
अपने घर में, समाज में
ढूँढ़ रही है समानता।
दोयम दर्जे का व्यवहार
न सहन करना पड़ता,
गर हर क्षेत्र में महिलाओं को
बराबर का अधिकार मिल जाता।
हालाँकि भेदभाव के बावजूद
अपना मुकाम हासिल कर रही हैं,
फिर भी महिला होने का
दंश आज भी झेल रही है।
मात्र वोट देने के अधिकार से
समानता नही आँकी जाती,
मिलता महिला को बराबर सम्मान
तो समानता की बात ही न होती।
लाया 'बेल्लाअब्जुग' का प्रयास
महिला के जीवन मे नई आस,
प्रतिवर्ष 26 अगस्त को
महिला समानता दिवस है खास।
रचयिता
मंजू गुसांईं,
सहायक अध्यापक,
राजकीय आवासीय प्राथमिक विद्यालय थराली,
विकास खण्ड-थराली,
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।
झेल रही है असमानता,
अपने घर में, समाज में
ढूँढ़ रही है समानता।
दोयम दर्जे का व्यवहार
न सहन करना पड़ता,
गर हर क्षेत्र में महिलाओं को
बराबर का अधिकार मिल जाता।
हालाँकि भेदभाव के बावजूद
अपना मुकाम हासिल कर रही हैं,
फिर भी महिला होने का
दंश आज भी झेल रही है।
मात्र वोट देने के अधिकार से
समानता नही आँकी जाती,
मिलता महिला को बराबर सम्मान
तो समानता की बात ही न होती।
लाया 'बेल्लाअब्जुग' का प्रयास
महिला के जीवन मे नई आस,
प्रतिवर्ष 26 अगस्त को
महिला समानता दिवस है खास।
रचयिता
मंजू गुसांईं,
सहायक अध्यापक,
राजकीय आवासीय प्राथमिक विद्यालय थराली,
विकास खण्ड-थराली,
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।
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