मुझे लांघना है पूरा संसार
मैं, कब तक,
इस देहरी में बैठ,
आकांक्षाओं की लालटेन लिए,
क्लांत - म्लान आँखों से,
क्षितिज के उस पार,
निहारती रहूँगी?
मुझे देहरी को लांघ,
उस पार जाना है।
देखना है दुनिया को,
स्वच्छंद आँखों से,
अरमानों के पंख फैलाकर
उड़ जाना है दूर आसमान में।
आँख-मिचौली खेलनी है,
उड़ते हुए बादलों से।
अठखेलियाँ करनी हैं,
रिमझिम सी बूँदों से।
बोलो मेरे विश्वास,
क्या तुम साथ दोगे?
मेरा हाथ पकड़,
मुझे ले चलो,
देहरी के उस पार।
मुझे लांघना है,
पूरा संसार।
रचयिता
मीनू जोशी,
सहायक अध्यापक,
राजकीय कन्या जूनियर हाई स्कूल चौसाला,
विकास खण्ड-धौलादेवी,
जनपद-अल्मोड़ा,
उत्तराखण्ड।
इस देहरी में बैठ,
आकांक्षाओं की लालटेन लिए,
क्लांत - म्लान आँखों से,
क्षितिज के उस पार,
निहारती रहूँगी?
मुझे देहरी को लांघ,
उस पार जाना है।
देखना है दुनिया को,
स्वच्छंद आँखों से,
अरमानों के पंख फैलाकर
उड़ जाना है दूर आसमान में।
आँख-मिचौली खेलनी है,
उड़ते हुए बादलों से।
अठखेलियाँ करनी हैं,
रिमझिम सी बूँदों से।
बोलो मेरे विश्वास,
क्या तुम साथ दोगे?
मेरा हाथ पकड़,
मुझे ले चलो,
देहरी के उस पार।
मुझे लांघना है,
पूरा संसार।
रचयिता
मीनू जोशी,
सहायक अध्यापक,
राजकीय कन्या जूनियर हाई स्कूल चौसाला,
विकास खण्ड-धौलादेवी,
जनपद-अल्मोड़ा,
उत्तराखण्ड।
बेहतरीन रचना
ReplyDelete