समाजसेविका

सारे जग की मदर है तू,
है सारे जग की माता।
तुम सम जग में हुआ ना कोई,
 ना कहलाया कोई जगमाता।

ममता की  सच्ची मूरत है तू,
प्रेम की सच्ची सूरत है।
इस धरती पर मेरी माई,
भगवान की एक मूरत है।

समाज ने जिनको ठुकराया,
तुमने उनको अपनाया।
मुरझाए कुचले फूलों को,
दी आंचल की शीतल छाया।

दीन दुखियों की दर्द वेदना,
देखी गई ना तुझसे माँ।
इंसानियत की परिभाषा,
सीखे कोई तुझसे माँ।

भूले बिछड़ों की बनी सहारा,
उनके होंठों को दी मुस्कान।
मानवता की सेवा की खातिर,
अपना जीवन किया कुर्बान।

नीले किनारे वाली साड़ी को,
खुद अपने हाथों धोया,
आशा विश्वास की पूँजी को,
मरते दम तक ना तूने खोया।

भारत रत्न, पद्मश्री जैसे,
दिए जग ने सम्मान तुझे।
अनगिनत उपलब्धियाँ पाकर भी,
ना आया कभी अभिमान तुझे।

माँ तेरी क्या महिमा गाऊँ,
अद्भुत तेरी गाथा है।
तेरे आगे शीश झुकाऊँ,
बस ये ही दिल में आता है।

प्रेम दया का पाठ पढ़ाया,
सारे जग को सन्मार्ग दिखाया।
तेरे आने से मेरी माता,
अनाथों को मिली ममता की छाया।

अवर्णनीय है गाथा तेरी,
सराहनीय हैं कर्म तेरे।
शब्द पड़े हैं कम मेरे,
कैसे गाऊँ गीत तेरे।

जन्मदिवस माँ तेरा,
हम सब आज मनाएँगे।
तेरे आदर्शों को मेरी माँ,
हम सब अपनाएँगे।

रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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