बाल कल्पना
काश होते पंख हमारे,
बन पतंग हम उड़ जाते।
नील गगन की सैर लगाते,
चिड़ियों संग रेस लगाते।
कोई ना हम को पकड़ पाता,
इतनी तेज हम उड़ जाते।
काश होते पंख हमारे,
बन पतंग हम उड़ जाते।
तितली संग उड़ते रहते,
हर फूल का रस चुराते।
तोता बन ऊँचे उड़ जाते,
मीठे-मीठे मधुर फल खाते।
कोई कितना हमें बुलाता,
हम किसी के हाथ ना आते।
काश होते पंख हमारे,
बन पतंग हम उड़ जाते।
देख आते हम परीलोक भी,
परियों संग खेल रचाते।
इंद्रधनुष को बनाकर झूला,
हम सब मिलकर खूब झूलते।
पल में यहाँ पल में वहाँ,
बादल काका को खूब खिझाते।
काश होते पंख हमारे,
बन पतंग हम उड़ जाते।
चंदा मामा के घर जाकर,
रोज नए पकवान खाते।
जब भी आते सूरज चाचा,
उनके रथ पर हम चढ़ जाते।
कितना सुंदर सपना यह,
इन सपनों में हम खो जाते।
काश होते पंख हमारे,
बन पतंग हम उड़ जाते।
रचयिता
सुधा गोस्वामी,
सहायक शिक्षिका,
प्रथमिक विद्यालय गौरिया खुर्द,
विकास क्षेत्र-गोसाईंगंज,
जनपद-लखनऊ।
बन पतंग हम उड़ जाते।
नील गगन की सैर लगाते,
चिड़ियों संग रेस लगाते।
कोई ना हम को पकड़ पाता,
इतनी तेज हम उड़ जाते।
काश होते पंख हमारे,
बन पतंग हम उड़ जाते।
तितली संग उड़ते रहते,
हर फूल का रस चुराते।
तोता बन ऊँचे उड़ जाते,
मीठे-मीठे मधुर फल खाते।
कोई कितना हमें बुलाता,
हम किसी के हाथ ना आते।
काश होते पंख हमारे,
बन पतंग हम उड़ जाते।
देख आते हम परीलोक भी,
परियों संग खेल रचाते।
इंद्रधनुष को बनाकर झूला,
हम सब मिलकर खूब झूलते।
पल में यहाँ पल में वहाँ,
बादल काका को खूब खिझाते।
काश होते पंख हमारे,
बन पतंग हम उड़ जाते।
चंदा मामा के घर जाकर,
रोज नए पकवान खाते।
जब भी आते सूरज चाचा,
उनके रथ पर हम चढ़ जाते।
कितना सुंदर सपना यह,
इन सपनों में हम खो जाते।
काश होते पंख हमारे,
बन पतंग हम उड़ जाते।
रचयिता
सुधा गोस्वामी,
सहायक शिक्षिका,
प्रथमिक विद्यालय गौरिया खुर्द,
विकास क्षेत्र-गोसाईंगंज,
जनपद-लखनऊ।
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