कामनाओं से मुक्ति का मार्ग है योग
वर्तमान युग कामनाओं, इच्छा-आकांक्षाओं का है और दैहिक सुख उपभोग का है। मानव मन तृष्णा के जाल में फँसा बिन पानी मीन जैसा तड़प रहा है। वह अज्ञानी श्वान की भाँति सूखी हड्डी को चबाते समय निकले अपने रक्त का ही पान कर हर्षित है। राग-द्वेष के झूले में बैठ भौतिकता की चकाचौंध में नित ऊँची पेंग लगा रहा है। वह ईर्ष्या की अग्नि में जल रहा है। उसका मन अशान्त है, विकारयुक्त है। उसकी विवेक बुद्धि पर अविवेक एवं अज्ञान की धूल जम गई है। वह भूल गया है कि इन कामनाओं का अन्त नहीं है। सुख की चाह अनन्त है। कामनाओं से मुक्ति एवं आत्म साक्षात्कार का सहज साधन है योग। योग जीवन जीने की कला है। यह समन्वय की आधारभूमि है, सह-अस्तित्व का स्वर्णिम फलक है जिसमें मानवीय मूल्यों के आदर्श त्याग, तप एवं तितीक्षा की स्याही से अंकित है। इस काल में भी योग की महत्ता सकल विश्व में स्वीकार की गई है।
योग देह शुद्धि कर आत्मा का परमात्मा से मिलन की प्रक्रिया का नाम है। सुख शांति मानव के अंतरमन में है, कहीं बाहर नहीं। दुर्भाग्य से अज्ञानतावश मानव उसे बाहर खोज रहा है, उसे वस्तुओं में, रिश्तों में ढूँढ रहा है। उसके मन में भटकाव है। चित्त की चंचलता स्वाभाविक है। योग उसका नियमन करता है। इसीलिए महर्षि पतंजलि ने चित्त की वृत्ति के निरोध को योग कहा क्योंकि अष्टांग योग साधना एवं कुंडलिनी जागरण हेतु चित्त पर नियंत्रण आवश्यक है। गीता में भगवान कृष्ण ने कर्म की कुशलता को योग कहा है।
आज हम योग के आठ अंगों में से केवल आसन, प्राणायाम एवं ध्यान का ही अभ्यास करते हैं। यदि हम प्रतिदिन आधा-एक घंटे ही विभिन्न आसनों एवं प्राणायामक का अभ्यास करते हैं तो न केवल मन की शुद्धि होती है बल्कि तमाम शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से मुक्ति मिलती है। योग से सर्वप्राणियों के प्रति अपनेपन का भाव जागता है। प्रकृति के प्रति प्रेम उपजता है। कहते हैं मनुष्य जो भी कर्म करता है, उसका नाश कभी नहीं होता है। हम आज कोरोना के रूप में उसी करनी का फल भोग रहे हैं। ये हमारे कर्मों का ही फल है। आज मानव सारी आयु गुजार देने के बाद यह नहीं देखता कि उसने कितनों को धोखा दिया? झूठ बोला, दुराचार किया, अत्याचार किया, खून बहाया, तबाही मचायी, सुख के पीछे भागता रहा। परमात्मा को भूल गया। ये न सोच पाया कि वो कौन है? उसके जीवन का उद्देश्य क्या है? ये संसार क्या है? इस संसार के मोह से छुटकारा कैसे मिलेगा? परमात्मा की प्राप्ति कैसे हो सकती है? ये सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई? इस सृष्टि का सृष्टा कौन है? सुख की प्राप्ति कैसे हो सकती है। आत्मा, परमात्मा और प्रकृति का परस्पर क्या संबंध है? इन प्रश्नों के उत्तर मानव ने कभी खोजे ही नहीं और आज की स्थिति सबके समक्ष है। सुख शांति तो दूर जीवन महामारी के भय तले गुजर रहा है। इस महामारी की एक वजह हमारे खान-पान में आये निरंतर होते बदलाव की भी रही है। पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण कर धूम्रपान का चलन भी खूब बढ़ा। मोटापा और मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों की भी कमी नहीं। आज लोगों में तनाव व थकान का स्तर बढ़ रहा है। इन सबसे बचने के लिये बहुत बढ़िया इलाज है जिसे योग कहते हैं। ये केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने का माध्यम नहीं बल्कि यह एक दर्शन है जिसका लाभ व्यापक है। ’अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घ सुखमय जीवन प्रदान करता है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा में ’अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ को मनाने का प्रस्ताव रखा था।
कहते हैं जिसका मन दुःखी हो, सुखों में जिसकी लालसा मिट जाए, उसे योग द्वारा शांति मिलेगी। योग से मन, इंद्रियाँ एव शरीर तीनों ही वश में होते हैं। प्रत्येक मनुष्य हर क्षण कोई न कोई कर्म करता ही है। या तो शरीर से या वाणी से या फिर मन से वो क्षण भर भी बिना कुछ कार्य किये नहीं रह सकता। इसलिये हो सके तो ’निष्काम’ कर्म करो। योग द्वारा उचित जीवनचर्या का पालन कर राष्ट्र, समाज व विश्व के लिये उपयोगी जीवन की कल्पना की जा सकती है। योगी व्यक्ति ईश्वर की विशेष कृपा का पात्र भी बन जाता है। ईश्वर प्राप्ति की अवस्था समाधि (ध्यान) कहलाती है। समाधि का तात्पर्य एक तरह से कष्टों से मुक्ति है। यदि कोई खाना खा रहा हो, पढ़ रहा हो, कहीं जा रहा हो, तो बड़े लोग बोलते हैं, भाई ध्यान से खाना, ध्यान से पढ़ना, ध्यान से जाना, इसका तात्पर्य ये है कि जिस समय जो कार्य कर रहें हो उस समय उसी विषय के ज्ञान पर एकाग्र रहेंगे तो उसका प्रतिफल अधिक अच्छा, अधिक लाभकारी, अधिक प्रसन्नता प्रदान करने वाला होगा। अनेक लोगों ने योग की शक्ति अपनाकर कई रोगों को खुद से दूर किया है। अपने जीवन को खुशहाल किया है। आज योग ने पूरे विश्व में अपनी एक मजबूत पकड़ बना ली है। अकेले अमेरीका में आज दो करोड़ से ज्यादा लोग रोजाना योग करते है। अतः निष्कर्ष के रूप में योग ’मानव को नई ऊर्जा, शांति, संतोष, सुख, अच्छी नींद तथा हमारे शरीर को स्वस्थ बनाये रखता है।
यदि जीवन में खुश रहना है, ईश्वरीय ऊर्जा की प्राप्ति चाहिए तो योग अपनाना चाहिए। क्योंकि यही तो है जो भौतिकवाद को अध्यात्मवाद की ओर अग्रसर करता है। योग के द्वारा ही हिंसा, क्लेश, कलुषता, घृणा, ईर्ष्या एवं अन्यान्य अमानवीय व्यवहारों मुक्त हो विश्व में शान्ति, समृद्धि, सामंजस्य, सौमनस्य, सहकार की नवल ऊर्जा, उत्साह, उल्लास एवं उमंग का संचार होगा जो इस धरती को हरा-भरा एवं खूबसूरत बनाये रखने के लिए आधारभूमि सिद्ध होगा।
लेखिका राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका हैं। शिक्षा, पर्यावरण एवं महिला मुद्दों पर काम कर रही हैं। फतेहपुर, उ0प्र0।
लेखक
आसिया फ़ारूक़ी,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय अस्ती,
नगर क्षेत्र-फतेहपुर,
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