चिड़िया कहती है
चिड़िया चहक-चहक कर कहती
कितनी सर्दी-गर्मी मैं सहती।
तुमने मेरा घर संसार उजाड़ा।
सबसे अपनी बात है कहती।
पेड़ गिराये मकान उजाड़े।
सीमेंट के मकान बनाये।
मुझे तो पत्थर ही प्यारे थे।
तुमने आलीशान महल बनाये।
सुबह-शाम मैं गगन में रहती।
धूप हवा मैं सब सहती।
कब तक मैं अब उड़ पाऊँगी
प्रदूषित हवा नहीं सह पाऊँगी।
पेड़ लगाओ, पेड़ बचाओ।
मेरा घर संसार बसाओ।
दम घुटता है अब तो मेरा
दे दो मुझको सुखद सबेरा
तभी तुम्हारा आँगन चहकेगा
बच्चों का संसार महकेगा।
कितनी सर्दी-गर्मी मैं सहती।
तुमने मेरा घर संसार उजाड़ा।
सबसे अपनी बात है कहती।
पेड़ गिराये मकान उजाड़े।
सीमेंट के मकान बनाये।
मुझे तो पत्थर ही प्यारे थे।
तुमने आलीशान महल बनाये।
सुबह-शाम मैं गगन में रहती।
धूप हवा मैं सब सहती।
कब तक मैं अब उड़ पाऊँगी
प्रदूषित हवा नहीं सह पाऊँगी।
पेड़ लगाओ, पेड़ बचाओ।
मेरा घर संसार बसाओ।
दम घुटता है अब तो मेरा
दे दो मुझको सुखद सबेरा
तभी तुम्हारा आँगन चहकेगा
बच्चों का संसार महकेगा।
रचयिता
माधव सिंह नेगी,
प्रधानाध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय जैली,
विकास खण्ड-जखौली,
जनपद-रुद्रप्रयाग,
मिशन विचार शक्ति में कविता को स्थान देने के लिए हृदय तल से आभार सहित धन्यवाद 🙏
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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