विश्व शरणार्थी दिवस
एक चिड़िया का बना घोंसला, सूखे तिनकों से तैयार,
बिखर गया जब उसका घर, सपने हो गए तार-तार।
कैसे बनेगा उसका घर, आयी समस्या बड़ी विकट,
समाधान करने को इसका पहुँची, वह ईश्वर के निकट।
शरणार्थी हो गयी वह, अब जीवन यापन कैसे होगा,
यही हमारा आज दिवस है, जो शरणार्थी दिवस बनेगा।
अपना देश और घर छूटा, वही शरणार्थी कहाते है,
जाति, धर्म, राष्ट्रीयता के कारण उत्पीड़न को सहते हैं।
प्रत्येक वर्ष 20 जून को, इसे मनाने का प्रावधान है,
शरणागत की रक्षा करना, समस्या का समाधान है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी, कार्य ये करती है,
4 दिसंबर 2000 से निर्णय ऐसा ही लेती है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने, एक उद्देश्य बनाया है,
शरणार्थियों को सम्मानित करना, जागरूक बनाना है।
अफ्रीकी एकता संगठन ने भी, सहमति व्यक्त की है,
अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी दिवस के, आयोजन को हरी झंडी है।
1914 मैं पॉप पायस एक्स द्वारा, स्थापित किया गया,
रोमन कैथोलिक चर्च में, जनवरी में ये दिवस मनाया गया।
1951 का शरणार्थी सम्मेलन, 1967 प्रोटोकॉल मदद करते हैं,
एकमात्र वैश्विक कानूनी उपकरण, महत्वपूर्ण पहलू कवर करते हैं।
देकर इनको राष्ट्रीयता, शिक्षा जीवन को सुचारू बनाये,
बुनियादी अधिकारों से वंचितों को, जीवन का अधिकार दिलाए।
बिखर गया जब उसका घर, सपने हो गए तार-तार।
कैसे बनेगा उसका घर, आयी समस्या बड़ी विकट,
समाधान करने को इसका पहुँची, वह ईश्वर के निकट।
शरणार्थी हो गयी वह, अब जीवन यापन कैसे होगा,
यही हमारा आज दिवस है, जो शरणार्थी दिवस बनेगा।
अपना देश और घर छूटा, वही शरणार्थी कहाते है,
जाति, धर्म, राष्ट्रीयता के कारण उत्पीड़न को सहते हैं।
प्रत्येक वर्ष 20 जून को, इसे मनाने का प्रावधान है,
शरणागत की रक्षा करना, समस्या का समाधान है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी, कार्य ये करती है,
4 दिसंबर 2000 से निर्णय ऐसा ही लेती है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने, एक उद्देश्य बनाया है,
शरणार्थियों को सम्मानित करना, जागरूक बनाना है।
अफ्रीकी एकता संगठन ने भी, सहमति व्यक्त की है,
अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी दिवस के, आयोजन को हरी झंडी है।
1914 मैं पॉप पायस एक्स द्वारा, स्थापित किया गया,
रोमन कैथोलिक चर्च में, जनवरी में ये दिवस मनाया गया।
1951 का शरणार्थी सम्मेलन, 1967 प्रोटोकॉल मदद करते हैं,
एकमात्र वैश्विक कानूनी उपकरण, महत्वपूर्ण पहलू कवर करते हैं।
देकर इनको राष्ट्रीयता, शिक्षा जीवन को सुचारू बनाये,
बुनियादी अधिकारों से वंचितों को, जीवन का अधिकार दिलाए।
रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
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