शून्य की संकल्पना
आज शून्य की संकल्पना को समझते हैं
शून्य कुछ नहीं होता,
फिर भी बड़ा फर्ज निभाता।
किसी संख्या का मान,
इससे झटपट ही बदल जाता।
संख्या को स्थिर ही रखता,
पूर्णांक के बाईं ओर जब आता।
दाईं ओर आ जाने पर,
अदशमलव संख्या का मान बढ़ाता।
शून्य कुछ नहीं होता,
फिर भी बड़ा फर्ज निभाता।
एक शून्य दाईं ओर आकर,
संख्या को दस गुना बढ़ाता,
आ जाएँ दो शून्य तो,
संख्या मान सौ गुना हो जाता।
तीन शून्य आ जाएँ तो,
यह मान हजार गुना हो जाता।
शून्य कुछ नहीं होता,
फिर भी बड़ा फर्ज निभाता।
टकरा जाए जिस संख्या से,
उसको भी शून्य कर देता,
भाग दिया जाए शून्य से,
तो संख्या का मान अनंत कर देता,
शून्य ना हो तो,
स्थानीय मान नहीं बन पाता।
शून्य कुछ नहीं होता,
फिर भी बड़ा फर्ज निभाता।
रचयिता
ओम प्रकाश श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उदयापुर,
विकास खण्ड-भीतरगाँव,
जनपद-कानपुर नगर।
शून्य कुछ नहीं होता,
फिर भी बड़ा फर्ज निभाता।
किसी संख्या का मान,
इससे झटपट ही बदल जाता।
संख्या को स्थिर ही रखता,
पूर्णांक के बाईं ओर जब आता।
दाईं ओर आ जाने पर,
अदशमलव संख्या का मान बढ़ाता।
शून्य कुछ नहीं होता,
फिर भी बड़ा फर्ज निभाता।
एक शून्य दाईं ओर आकर,
संख्या को दस गुना बढ़ाता,
आ जाएँ दो शून्य तो,
संख्या मान सौ गुना हो जाता।
तीन शून्य आ जाएँ तो,
यह मान हजार गुना हो जाता।
शून्य कुछ नहीं होता,
फिर भी बड़ा फर्ज निभाता।
टकरा जाए जिस संख्या से,
उसको भी शून्य कर देता,
भाग दिया जाए शून्य से,
तो संख्या का मान अनंत कर देता,
शून्य ना हो तो,
स्थानीय मान नहीं बन पाता।
शून्य कुछ नहीं होता,
फिर भी बड़ा फर्ज निभाता।
रचयिता
ओम प्रकाश श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उदयापुर,
विकास खण्ड-भीतरगाँव,
जनपद-कानपुर नगर।
Adbhud pratibha
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