पापा
थोड़े-थोड़े सख्त हैं पापा,
प्यार भरा हर वक़्त हैं पापा।
जब भी धूप घनी कष्टों की,
छायादार दरख़्त हैं पापा।
पत्थर, पत्थर सब कहते हैं,
पर समझे न कोई पापा।
दुनिया की नस-नस में बहते,
जीवन रूपी रक्त हैं पापा।
इस दुनिया की प्रीत पराई,
फिर भी मन आश्वस्त हैं पापा।
जग के इन झूठे रिश्तों में,
इक सबसे विश्वस्त हैं पापा।
होठों पर मुस्कान हमेशा,
भले दर्द से त्रस्त हैं पापा।
अपना सब दुख भूल भालकर,
बच्चों के संग मस्त हैं पापा।
भूखे पेट भले हों लेकिन,
रोज नई दावत हैं पापा।
रोक ले हर गम खुद के ऊपर,
इक ऐसे पर्वत हैं पापा।
खेल, खिलौने, कपड़े, लत्ते
हम सबकी शोहरत हैं पापा।
खुद की जेब भले ठंडी हो,
घर के लिए इशरत हैं पापा।
अम्मा, बाबा, मम्मी, दीदी
हम सबकी उजरत हैं पापा।
घर के काज सभी पापा से,
सबके लिए उद्यत हैं पापा।
रिश्ते नाते जग की रीती
इन सबमें संयत हैं पापा।
दुख की चादर पर लिपटी,
सुख की घनी परत हैं पापा।
जब भी धूप पड़े कष्टों की,
छायादार दरख़्त हैं पापा।
छायादार दरख़्त हैं पापा।
रचयिता
रघुनाथ द्विवेदी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चायल,
विकास खण्ड-चायल,
जनपद-कौशाम्बी।
प्यार भरा हर वक़्त हैं पापा।
जब भी धूप घनी कष्टों की,
छायादार दरख़्त हैं पापा।
पत्थर, पत्थर सब कहते हैं,
पर समझे न कोई पापा।
दुनिया की नस-नस में बहते,
जीवन रूपी रक्त हैं पापा।
इस दुनिया की प्रीत पराई,
फिर भी मन आश्वस्त हैं पापा।
जग के इन झूठे रिश्तों में,
इक सबसे विश्वस्त हैं पापा।
होठों पर मुस्कान हमेशा,
भले दर्द से त्रस्त हैं पापा।
अपना सब दुख भूल भालकर,
बच्चों के संग मस्त हैं पापा।
भूखे पेट भले हों लेकिन,
रोज नई दावत हैं पापा।
रोक ले हर गम खुद के ऊपर,
इक ऐसे पर्वत हैं पापा।
खेल, खिलौने, कपड़े, लत्ते
हम सबकी शोहरत हैं पापा।
खुद की जेब भले ठंडी हो,
घर के लिए इशरत हैं पापा।
अम्मा, बाबा, मम्मी, दीदी
हम सबकी उजरत हैं पापा।
घर के काज सभी पापा से,
सबके लिए उद्यत हैं पापा।
रिश्ते नाते जग की रीती
इन सबमें संयत हैं पापा।
दुख की चादर पर लिपटी,
सुख की घनी परत हैं पापा।
जब भी धूप पड़े कष्टों की,
छायादार दरख़्त हैं पापा।
छायादार दरख़्त हैं पापा।
रचयिता
रघुनाथ द्विवेदी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चायल,
विकास खण्ड-चायल,
जनपद-कौशाम्बी।
प्रिय रघुनाथ जी द्वारा उत्कृष्ट रचना की गयी है। अनेकशः शुभकामनाएं।।
ReplyDeleteरणविजय निषाद