होली

अपनों में जब दूरियाँ बढ़ जाती हैं,
गिले-शिकवे दूर कराने आती है होली।।

फाल्गुन मास पूर्णिमा के दिन,
प्रेम, सद्भावना, भाईचारा सहेजने आती है होली।।

बचपन की उमंग जवानी का उल्लास,
बुढ़ापे में एहसास दिलाने आती है होली।।

ऋतुराज बसन्त की मस्ती में,
प्रेम का आकर्षण लिये
रंगों में सरावोर,
हास्-परिहास आनंद,
देने आती है होली।।

 मस्ती के उत्सव का पर्व
अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं की महक
बिखेरने आती है होली।।

एकता, प्यार, सुख की सौगात।
उत्साह नई आशा लिये
बिछड़ों को अपनो से मिलाने,
उदास बेरंग जिंदगी में
खुशियों के रंग भरने आती है होली।।

दुःख उलझन संताप लिये
होलिका का जलना,
विनाशकारी विध्वंसक
शक्तियों के प्रतीक को बताती है होली।।

बिना किसी सुरक्षा के
प्रह्लाद का बच जाना,
सत्य की रक्षा के संकल्प को,
असत्य पर सत्य की जीत दर्शाती है होली।।

सबको गले लगाकर
आलस्य, अविवेक, क्रोध,
मूढ़ता के साथ।
द्वेष, दम्भ,अहंकार, ईर्ष्या
घृणा का दहन कराती है होली।।

हर वर्ष सामूहिक उल्लास
ऊर्जा, उन्नयन, समरसता
सौहार्द संग,
जगत के सुख की कामना  लिये,
आती है होली।।

नवपीढियाँ परम्पराओं को टूटने न दे,
मनुष्यता, सम्वेदनशीलता
का पाठ पढ़ाने,
आती है होली।।

ढोलक पर फाग उलारे की मस्ती लिये,
हमारी सांस्कृतिक विरासत को याद दिलाने आती है होली।।

रचयिता
रवीन्द्र नाथ यादव,
सहायक अध्यापक,  
प्राथमिक विद्यालय कोडार उर्फ़ बघोर नवीन,
विकास क्षेत्र-गोला,
जनपद-गोरखपुर।

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