होली

फागुनी बयार रंगों की फुहार,
जब-जब आती  है होली के संग;
भिगो जाती है तन-मन
बिखेर कर खुशियों के रंग।
पर, कुछ पल का उड़ता ये अबीर,
 समय के साथ हो जाएगा धूमिल;
और दिखावटी-बनावटी रंग
  हो जाएँगे धीरे-धीरे बदरंग।
तो क्यों न मनाएँ ऐसा पर्व
 जिस पर रहे हमेशा गर्व,
वैमनस्य, कटुता, भेदभाव की
   होलिका में देकर आहुति;
हर मानव सर्वत्र बिखेरे
   मानवता के पक्के रंग।।
                       
रचयिता
निशी श्रीवास्तव,
प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय रमपुरवा,
विकास खण्ड-बी0के0टी0,
जनपद-लखनऊ।

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