अबकी ऐसी होली आये

फागुन की मस्ती छा जाए
तन-मन थिरके, नाचे, गाये
बिना-बात हर मन हर्षाये
अबकी ऐसी होली आये

भले चेहरा चित-पुत जाए
पर मन मैला हो न पाये
बुरी बात न हृदय दुखाये
अबकी ऐसी होली आये

मन में प्रेम-रंग चढ़ जाए
छूटे से भी न छुट पाये
हिय में आनंद समाये
अबकी ऐसी होली आये

बैर-भाव सारा धुल जाए
बोली में मिश्री घुल जाए
हर ग्रंथि, बंधन खुल जाए
अबकी ऐसी होली आये

गले मिलें या न मिल पायें
दिल मिल जायें, मन खिल जायें
झगड़े सारे दूर भगाये
अबकी ऐसी होली आये

मीठी गुजिया प्रेम-पगी हो
मठरी-सेमें स्नेह-तली हों
अपनेपन को खूब बढ़ाये
अबकी ऐसी होली आये

जब कोई छोड़े पिचकारी
बच्चे की लागे किलकारी
क्रोध-भाव मन में न आये
अबकी ऐसी होली आये

मय की मदहोशी न छाये
भंग रंग में न पड़ पाये
शुद्ध प्रेम मदमत्त बनाये
अबकी ऐसी होली आये

छोटे शीश बड़ों को नायें
आशीर्वचन बड़े बरसायें
मर्यादा पर आँच न आये
अबकी ऐसी होली आये

रस-सिंधु में सभी नहायें
खुद हरषें, सबको हर्षायें
चहुँ-ओर खुशहाली छाये
अबकी ऐसी होली आये

दुर्गुण सारे बनें होलिका
अग्नि में ही जल-भुन जायें
सद्गुण भक्त प्रह्लाद बनें, जो
अग्नि में तप निखर के आयें

भवसागर होवे सुखसागर
कण-कण मंगल-मोद सुनाये
अबकी ऐसी होली आये
अबकी ऐसी होली आये

रचनाकार
प्रशान्त अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
ज़िला-बरेली (उ.प्र.)

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