मैं तुम्हारा जीवन

जितना मेरा ह्रास करोगे,
उतना ही तुम त्रास सहोगे,
मैं बहती जीवन जल धारा,
मुझे नष्ट कर जी न सकोगे।
प्यासी धरा पर प्यासे प्राणी,
प्यासा गर जनजीवन होगा,
पशु, पादप, मानुष, पक्षी,
प्राणी-प्राणी पतन होगा।
न हरित-हरित पल्लव होंगे,
न पुष्पों से बगिया महकेगी,
न खगों की चहचहाहट,
न कोयल की कुहू होगी।
न आँगन गौरैया वास करेगी,
मेरे  बिन  संताप करेगी,
सरिता की कल-कल ध्वनि बिन,
वसुधा मन विषाद भरेगी।
अन्न उपज दुर्लभ हो जाएगी,
देह भूख से थर्रायेगी,
प्राणवायु की अल्पता से,
मानव जाति अंत को आएगी।
नदी, नहर, झील, सरोवर, सिंधु
संग्रहकर्ता हैं सब मेरे,
मनु मैं हूँ धरोहर अनुपम,
मुझे संजो मैं तुम्हारा जीवन।

रचयिता
पूजा सचान,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मसेनी(बालक) अंग्रेजी माध्यम,
विकास खण्ड-बढ़पुर,
जनपद-फर्रुखाबाद।

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