जल

गिरता जल ये बहता पानी,
करता कितनी ये मनमानी।
जहाँ मिला विस्तार वहीं से,
कल-कल करता पानी।
गिरता जल ------
कर निनाद, झरना बन झरता पानी,
ले उफान मदमाता फिरता।
यहाँ-वहाँ सब दूर दिखाता,
अपना रौद्र रूप ये पानी।
गिरता जल -----
पौरे से नाला बन जाता,
नालों से नद रूप बनाता।
बहा ले जाता गंद धरिणी के,
गंगा जल कहलाता पानी।
गिरता जल-----
रूप अनेकों धर धरा पर,
सागर में मिल जाता पानी।
फिर विलीन हो रूप बदलकर ,
बादल बन बरसाता पानी।
गिरता जल ----
अजब निराली दुनिया तेरी,
जल ही कहते जीवन पानी।
तेरे बिन संसार नही कुछ,
सागर तू गुणसागर पानी।
गिरता जल ---

रचयिता
श्रीमती प्रीति श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय पठाकरका,
विकास खण्ड-बंगरा,
जनपद -झाँसी।
उत्तर प्रदेश।।

Comments

  1. बहुत ही वास्तव पूर्ण heart touching poem with social sensitivity

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    1. Bahut sundar with social instincts _पौर्णिमा केरकर गोवा

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