गौरैय्या और नन्हा बच्चा

गौरैय्या गौरैय्या अब तुम आती ना हो आँगन में
दाना चुगने कहाँ हो जाती, प्रश्न है यह मेरे मन में

पूछूँ प्रश्न मैं किससे यह और बता कहाँ जाकर
मिलेगा पता कहाँ मुझको, कैसे आऊँ तुम्हारे घर

ढूँढ रहा हूँ तुमको छत पर, सड़क और गलियारे में
मुझको तो मिलती ना हो, कहीं पेड़, खेत और झाड़े में

चलते-चलते थक गया हूँ, पैर में मेरे छाले हैं
ढूँढने में जगह - जगह हाथ हुए मेरे काले हैं

जाऊँगा ऐसे घर तो, मै डाँट -पिटाई खाऊँगा
मुझे क्या बुद्धू समझा है, मुँह हाथ मैं धोकर जाऊँगा

पहुँचा नन्हा सा बच्चा फिर एक तालाब किनारे
धोकर मुँह जो खोली आँखें, दिखी चिरैय्या पंख पसारे

दौड़ा झट से पास वो उसके, बोला कहाँ गई थीं तुम
तुमसे मिले बिना देखो मैं कितना रहता हूँ  गुमसुम

चिड़िया बोली चीं चीं चीं चीं,  व्यथा कह सब  उसे सुनाई
सुन कर बात चिरैय्या की वजह समझ बच्चे को आई

बोला गलती हुई है हमसे और हमारे पापा से
दादा -दादी तो बोले थे, मत हटाओ छप्पर सर से

पर हमको ही ऊँचे -ऊँचे बँगले की होड़ लगी थी
यह ना सोचा की छप्पर में तुम सपरिवार बसीं थीं

माफ़ कर दो ओ गौरैय्या तुमको घर हम लाएँगे
नन्हा एक घोंसला तुम्हारा छत पर हम बनाएँगे

रोज़ आऊँगा मिलने तुमसे लेकर मैं दाना - पानी
मिलकर फिर हम साथ पढ़ेंगे, राजा -रानी की कहानी

जितनी पृथ्वी है यह मेरी, उतना ही अधिकार तुम्हारा है
हर  जीव, जंतु और पौधे का बराबर हिस्सा सारा है

चिड़िया बोली चीं चीं चीं चीं, बच्चा बोला अब हुआ है क्या?
बोली तुम जैसे बच्चे हों सब तो,  यह संसार रहे  बचा
               
रचयिता
जैतून जिया,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय गाजू,
विकास खण्ड-कछौना,
जनपद-हरदोई।

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