क्या आप पढ़ाने जा रहे हैं

क्या आप पढ़ाने जा रहे हैं?
रुकिए कुछ विचार कीजिए व कुछ चीजों पर focus कीजिए।
1. क्या आपने सोचा है कि आपको किस विषय में किस कक्षा में व किस topic पर बात करनी है?
2. क्या आपने आज के discussion की योजना बनाई है?
3. क्या आपने Decide किया है कि किस बच्चे को किस तरह पढ़ाना है?
4. क्या आपने activities निर्धारित कर रखी हैं?
5. क्या आपने कक्षा के वार्तालाप का मानसिक अभ्यास कर रखा है?
यदि नहीं किया है तो कक्षा में जाते-जाते कीजिए।
6. क्या आपने topic से related प्रश्नों की तैयारी कर रखी है?
7. क्या आपने decide कर लिया है कि activity को कहाँ तक लेकर जाना है?
8. क्या आपने activity में प्रयोग किये जाने वाले TLM को decide कर लिया है? व उनका प्रयोग किस स्तर तक व किस हद तक करना है। कहीं ऐसा ना हो कि आप केवल TLM के प्रयोग में ही उलझकर सारा समय जाया कर दें और आपका असल उद्देश्य पीछे ही छूट जाए।
9. क्या आपने अपनी pedagogy पर गौर कर लिया है? इसमें चिन्तन व application के अवसर हैं भी या नहीं। कहीं ऐसा न हो कि आपका पढ़ाना एक information के रूप में ही नहीं दिया जा रहा हो।
कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप उन चीजों को ही repeat किये जा रहे हों जिन्हें बच्चे पहले से जानते हों और आपको अपने प्रश्नों से ही निकलवाना चाहिए था?
10. कहीं आप किसी सूचना को in bits में तो नहीं दे रहे जिन्हें बच्चे apply करने मे हिचकिचायें।
11. कहीं आपके मन में हथेली पर सरसों उगाने का विचार तो नहीं आ रहा यह आपके और बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
12. बच्चों को समय दीजिए उन्हें खुद करके सीखने दीजिए। जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए।
13. कृपया अगर आप Grammatic approach से काम कर रहे हैं और वह कारगर नहीं हो रही तो please इस approach को बदलिए और CLT communicative language teaching अपनाइए।
पहले बच्चों को integrated content दें वो उनके लिए example बन जाएगा और वहीं पर उनको grammatic बारीकियाँ समझाइए।
बच्चों को आप ज्यादा से ज्यादा उदाहरण दीजिए व उनको अपने नियम स्वयं बनाने दीजिए।
केवल और केवल correct प्रयोग पर जोर नहीं दें। जहाँ भी गलती हो रही हो वहाँ समझाते हुए वार्तालाप के माध्यम से correction करावें।
14. याद रखिए आपको सिर्फ facilitate करना है व बच्चों की inner capacity को ही काम में लेते हुए उन्हें काम करने का मौका दें।
15. प्यार वो जादू है जो गूंगे लोगों को.भी बोलने के लिये विवश कर देता है। बच्चों को डाँटिए नहीं उनकी शरारतों पर smile करें व उनकी शरारतों का उपयोग अपने topic से जोड़ते हुए topic को आगे बढ़ाने का कार्य करें।
16. आपकी कक्षा जीवंत होनी चाहिए, कक्षा में शोर होना चाहिए। आप भी बच्चों के शोर का हिस्सा बनिए। एक डाँट बच्चे की learning को बहुत पीछे ले जा सकती है जबकि एक जीवंत क्रिया बहुत आगे।
17. बच्चों के मित्र बनिए शत्रु नहीं। जिससे बच्चों की जुबान पर आपका और सिर्फ आपका ही नाम हो।
18. बच्चों को हमेशा ही यह एहसास कराइए कि आप केवल उनसे संवाद कर रहे हैं उनको पढने के लिए force नहीं कर रहे हो।
19. बच्चों की बात को ध्यान से सुनिए भले ही विषय से हटकर हो फिर उसे topic से जोड़ दीजिए।
बच्चों को challenge दीजिए क्योंकि challenge स्वीकारना व उसको पूरा करना मानवीय स्वभाव होता है। challenge पूरा करके सीखना permanent learning देता है।
20. मानवीय भावनाओं व मानवीय संवेदनाओं का हमेशा आदर इस तरह से करें कि बच्चे आपको अपना मित्र मानने लगें और हर परेशानी को share करने लगें।
21. आप जो भी बात करें बच्चों के experience पर आधारित हो। वह किसी भी subject से शुरु करके किसी भी subject मे जा सकती है। english teaching को maths या हिन्दी के अनुभवों से शुरु किया जा सकता है। science की teaching के लिये Ev's या maths, हिन्दी या geography से शुरु कर सकते हैं।
22. आखिर में जब आप अपना topic sum up कर रहे हों तो शुरू से आखिर तक की क्रियाओं पर चर्चा से लेकर conclusion पर पहुँचने तक पर प्रश्न पूछे जाने चाहिए।
शायद आपको अंदाज भी नहीं होगा कि आप अब तक क्या कर चुके हो। आपने वो मुकाम हाँसिल कर लिया है जिसको हाँसिल करना समाज, बच्चों और स्वयं आपको सपना सा लगता है।

लेखक
सत्यनारायण शर्मा,
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, 
धौलपुर, राजस्थान।

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