प्रेम-A Motivational Force

दो अलग विद्यालय
दो अलग विद्यार्थी
दो अलग पद
किंतु परिस्थिति एक और प्रतिक्रिया भी एक

2014 में मैं शिक्षामित्र के पद पर कार्यरत थी। स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी किंतु किसी कारणवश मैं स्कूल में ही रुकी हुई थी। मेरे साथ स्कूल के कुछ बच्चे भी वही खेल रहे थे। तभी अचानक उनमें से एक बच्चे संदीप को माथे में चोट लग गई काफी खून निकलने लगा।  मैं तुरंत उसको लेकर नजदीक के डॉक्टर के पास गई।  डॉक्टर ने कहा खून को रोकने के लिए चोट में दो टाँके लगाने पड़ेंगे।  मैंने सहमति दे दी।  मैं सोच रही थी कि अब यह बच्चा बहुत रोएगा। मैंने उसे प्यार से समझाया कि डरने की कोई बात नहीं है मैं तुम्हारे पास हूँ, रोना मत। मुझे बेहद आश्चर्य हुआ कि टाँके लगाने की उस प्रक्रिया के दौरान उस बच्चे ने उफ्फ तक नहीं की। स्वयं डॉक्टर भी यह देखकर बहुत हैरान था।  मैंने सोचा की यह लड़का है, इसमें सहनशक्ति शायद ज्यादा है इसीलिए यह नहीं रोया। बच्चा ठीक हो गया था, बात आई गई हो गई। मैं सब कुछ भूल गई।

बात फरवरी 2019 की ही है। मैं अब एक अन्य स्कूल में सहायक अध्यापिका के पद पर कार्यरत हूँ। एक 7 वर्ष की छोटी सी बच्ची दिव्या जब पानी पीने के लिए आई तो नल का हत्था किसी प्रकार उसके माथे में लग गया। माथे से बहुत खून बहने लगा। घबराए हुए बच्चे उसे लेकर मेरे पास आए। उसके माथे को दबाए हुए मैं तुरंत उसे डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने जख्म देखकर कहा एक टाँका लगाना पड़ेगा तभी यह चोट जल्दी ठीक हो पाएगी। मैंने दिव्या की ओर देखा और डॉक्टर को टाँका लगाने की सहमति दे दी। मुझे लग रहा था कि दिव्या को संभालना बहुत मुश्किल होगा। छोटी सी बच्ची है बहुत रोएगी। मैंने उसे प्यार से समझाया- बेटा, तुम रोना मत, डरना मत, मैं तुम्हारे पास हूँ।  मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब दिव्या ने भी इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उफ़ तक नही किया। डॉक्टर भी देखकर हैरान रह गया।  बोला कि यदि यह बच्ची अपने माँ बाप के साथ आती तो मेरा पूरा क्लीनिक रो-रोकर सिर पर उठा लेती।

अब इसके विपरीत परिस्थिति देखते हैं। यदि कक्षा में हम इनमें से किसी बच्चे के हल्की सी चपत लगा देते हैं तो यही बच्चे पूरे आँसुओं के साथ जार-जार रोते हैं।

घोर आश्चर्य! क्या एक हल्के से थप्पड़ की चोट उन डॉक्टरी टाँकों(जोकि बिना सुन्न किये लगाये गए) से भी अधिक है??

असली सार इसी में निहित है कि बच्चा शारीरिक चोट नहीं बल्कि मानसिक चोट व अपमान के कारण रोता है। एक पूरा व्यक्तित्व समाया है बच्चे में जिसे सबके समक्ष अपमानित होने पर आघात पहुँचता है। 

अध्यापक का प्रेम, अध्यापक का सकारात्मक मोटिवेशन बच्चे को असंभव करने हेतु प्रेरित करता है, बच्चे के मन में स्कूल के प्रति, अध्यापकों के प्रति प्रेम व आदर जगाता है, उन्हें प्रतिदिन विद्यालय आने हेतु प्रेरित करता है। अध्यापक का मात्र एक इनपुट विद्यार्थियों से प्रेम.....विद्यालय हेतु अनेक आउटपुट दे जाता है।

Be a Valentine to your students.....It will create a lovable progressive society....

सभी अध्यापकों को सादर समर्पित।

लेखिका
रीता गुप्ता,
सहायक अध्यापक, 
मॉडल प्राइमरी स्कूल बेहट नंबर-एक,
जनपद-सहारनपुर।

Comments

  1. बहन जी आपकी तो जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है

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    1. किसी एक की नही भाई सभी बेसिक के शिक्षक मिलकर इस समय प्राथमिक शिक्षा में इंक़लाब ला रहे हैं इसलिए सभी तारीफ़ योग्य हैं।

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    2. रीता गुप्ता

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  2. आप स्नेह,प्रेम,,कर्तव्यनिष्ठा की पृतिमूर्ति हैं बहन,,,आपको नमन

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  3. Bahoot khoob di. It depends on a good teacher that how a student can be directed towards education, mortality or bad behaviour.

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  4. हार्दिक आभार

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  5. I remember your first case ....Hats off to your selfless love for kids

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  6. आदरणीय रीता गुप्ता मैडम
    कहानी की जीजिविषा से आँखें नम हो गईं।आप जैसी संघर्षशील व्यक्तित्व को साधुवाद।🙏🙏

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    1. आदरणीय सर, उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद। बतलाना चाहूंगी कि कहानी में काल्पनिकता का पुट होता है किंतु ये घटनाएं यथार्थ में मेरे साथ घटित हुई हैं। उन घटनाओं के आधार पर मिले अनुभव को साझा किया है सबके साथ।

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  7. Salute to you
    Great work n good thinking
    Speech less

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  8. 🌻🌼🌸🏵🌷⚘🌺🌹

    आपका कार्य बहुत ही सराहनीय व विचार उत्कृष्ट हैं।
    अपना अनुभव साझा करने के लिये बहुत-बहुत आभार ।
    👏👏👏👏👏👏👏

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  9. This comment has been removed by the author.

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  10. Great going ma'am...👏👏

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  11. REALLY
    YOU R VERY LABOURERS.

    Nice

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