बसंत पंचमी

बसंत श्री आई.....
आज बसंत पंचमी है जो न केवल वाणी-कल्याणी का जन्मोत्सव है अपितु होलिकोत्सव के प्रारम्भ का भी दिन है।
   बसंत कामदेव का सखा माना जाता है। कामदेव को 'पंचबाण' भी कहा जाता है। विशेष रूप से उनका धनुष और बाण दोनों ही पुष्प निर्मित हैं।
 'काम कुसुम धनु सायक लीन्हें,
  सकल भुवन अपने वश कीन्हें।
शायद कामदेव के पंचबाणों की स्मृति के लिए ही उसके सखा बसंत को पंचमी तिथि से संयोजित कर दिया गया है।
माघ मास की इस पंचमी को 'बसंत पंचमी' व 'श्री पंचमी' भी कहा गया है।
    
     बसंत के आते ही प्रकृति नाना प्रकार के रंग-बिरंगे पुष्पों से सुसज्जित हो जाती है। हिन्दी साहित्य का शायद ही ऐसा कोई साहित्यकार रहा हो जिसने अपनी रचना के लेखन का आधार  'बसंत ऋतु' को न बनाया हो।

हिंदी के ही नहीं इसे संस्कृत कवियों की भी लेखनी ने स्पर्श किया है।
 वास्तव  में यह पर्व प्रकृति के नाना  रूपों के निदर्शन का पर्व है।
जो विशेषता इस पर्व में परिलक्षित होती है वह यह सोचने को पर्याप्त है कि समन्वय ही जीवन है।
   किसी क्यारी में यदि एक रंग के फूल लगें हों तो वह उतनी शोभित नहीं होती जितनी विभिन्न रंगों के फूलों के सज्जित लगती है।
    कहीं पीले पर लाल पुष्पों की छटा....नीले पर गुलाबी.. श्वेत पर  बैंगनी आदि अनेक रंग इसी तरह एक-दूसरे से मिलते हुए जिस सामूहिक सौंदर्य का प्रदर्शन कर रहे हैं..... शायद वहीं बसंत है।
यह वह काल है जिस समय दिशाओं में छाये हुए कोहरे की घनी पर्त हट जाती है। भगवान भास्कर की रश्मियाँ थोडी़ ऊष्ण होने लगतीं हैं। पृथ्वी और आकाश दोनों ही सज्जनों के चित्त के समान निर्मल दिखाई पड़ते हैं।
     कहीं चन्दनीय वायु बह रही है ...कहीं कोमल कलियाँ ऐसी चमक रहीं हैं मानो जलती हुई दीपशिखाएँ। डाली-डाली पर कोयल कुहुक रही है।
     क्यों न हो? आज धरा पर ऋतुओं के राजा बसंत का आगमन हो रहा है।

स्वागतम् बसंत ऋतु.... स्वागतम्

लेखिका
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।

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