अपनी जड़

कितना प्यारा कितना न्यारा
सुन्दर-सुन्दर परिवार हमारा।
जड़ है अपनी जन्म मिला है,
इस जीवन का, फूल खिला है।
एक कहानी हम तुम्हें सुनाएँ,
जड़ की उसकी, बात बताएँ।
डाली पर सुन्दर, फूल मनोहर,
सुरभित थे वे, डाल-डाल पर।
समझ रहे थे, मैं जग से न्यारा,
जड़ को भूला, फूल था सारा।।
मौसम आया, बिजली गिरकर,
पेड़ भी झुलसा, फूल झुलसकर।
माटी में मिल मिटे सभी थे,
जो फूल सुहाने रहे कभी थे।
बारी आयी फिर जड़ की बच्चों
जड़ की महिमा, समझो बच्चों।
आयी वर्षा जब, पाकर पानी,
पेड़ ने पायी एक नई जवानी।
हरियाली ने जब रूप सँवारा,
हरा भरा था, पेड़ वो न्यारा।
आया समय जब, खिले फूल थे।
जड़ है अपनी, कह उठे फूल थे।
परिवार हमारा, जड़ है प्यारा,
देता हमको है, जीवंत सहारा।
कभी न भूलो, अपनों को तुम,
चाहें जितना भी, बड़े बनो तुम।
फूल है पाता, जीवन जड़ से,
बँधे हुए हम हैं, अपनी जड़ से।
सुखमय जीवन हो अपना प्यारा,
रिश्तों नातों का, परिवार हमारा।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

Comments

Total Pageviews