ऋतुराज बसंत

ऋतुराज बसंत तुम आ गए, बन के उल्लास छा गए।।।।।
फूलों की कलियों संग उपवन की महक में समा गए,,,,, ऋतुराज बसंत तुम आ गए।।।।

हर वृक्ष, हर डाल,, हर शाखा है हरियाई सी,,,, नन्हीं-नन्हीं कोपलों से फूटें नई ऊर्जा सी।।।।।
प्रकृति भी एक नई कामना रंग में नहाई सी,,,, हर तरफ है एक नई सुंदरता आयी सी।।।।।

सकारात्मकता का संचरण हो रहा,, यह हृदय भाव विभोर सा खो रहा।।।।
तुमने कल्पना को जो स्पर्श किया,, न जाने कितनी नई संवेदनाओं ने जन्म लिया।।।।।

शीतकालीन थपेड़ों ने जिनकों गिरा दिया,,,, ऋतुशिरोमणि तुम्हारे आने से।।।।।।
प्रकृति ने उनको पुनः संवार दिया,,, देखो कितना अच्छा मानव पर उपकार किया। ।।।

ऋतुराज तुमने मेरी वेदना को डरा दिया,,,, एक नई सोच का मुझे रास्ता दिखा दिया।।।।।
दुःख के बाद सुख स्वयं ही आ जायेगें,,,, यूँ ही सबसे हम अनुभव नया सीखते जायेंगे।।।।।।

ऋतुराज बसंत तुम आ गए,,, बनके उल्लास छा गए।।।।।कोयल भी अब गायेगी,,, चिड़िया भी गुनगुनाए गी,,,चहुदिशाएँ  अब मुस्कुराएगी,,,, हर जगह खुशियाँ छा जाएँगी।।

रचयिता
वर्तिका अवस्थी,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय देवामई(अंग्रेजी माध्यम),
विकास क्षेत्र-मैनपुरी,
जनपद-मैनपुरी।

Comments

  1. वाह क्या लेखनी है

    सुंदरतम यथा नाम तथा गुण
    शब्दों और भावों का सुंदर तारतम्य

    बेहतरीन रचना 👌💐

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  2. Wahh bahut khoob auntyji
    Congratulations

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  3. Wahh bahut khoob auntyji
    Congratulations

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