मैं हूँ किताब

मैं हूँ किताब, मैं हूँ किताब..
मेरे अंदर है समाया ज्ञान बेहिसाब।
मुझमे है भूगोल, मुझमें है विज्ञान...
मुझमें है समाया सौरमंडल और नीला आसमान।।।

तुम्हें कुशाग्र बनाने का मेरा वादा है,
तुम्हें सबसे आगे रखने का मेरा इरादा है...
बनो मेरे सखा सहेली, मिट जाएगी तुम्हारी अज्ञान की पहेली।।।

मुझमें हैं दो एकम दो, दो दूनी चार,
मुझमें है समाया पूरा संसार...
मुझमें है गीता, मुझमें कुरान,
मेरा संदेश बनो अच्छे इंसान।।

मुझे पढ़कर बनो समझदार,
तब होगा तुम्हारे ज्ञान का सही आधार..
करो तर्क, कुतर्क न करना,
संस्कृति का मुझमें समाया हैं गहना।।।

अज्ञानता के अंधकार को हटाने के लिए,
शिक्षा की ज्योति को जलाना है,
पढ़-लिखकर तुम्हें आगे बढ़ते जाना है..
अपनी ज्ञान की वर्तिका से जीवन खुशहाल बनाना है,
आने वाली पीढ़ी को किताब का महत्व समझाना हैं।।।।

मैं हूँ किताब, मैं हूँ किताब,
मेरे अंदर है समाया ज्ञान बेहिसाब।।।।

रचयिता
वर्तिका अवस्थी,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय देवामई(अंग्रेजी माध्यम),
विकास क्षेत्र-मैनपुरी,
जनपद-मैनपुरी।

Comments

  1. बहुत सुंदर कविता मैंम
    रीता गुप्ता

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