उड़ान

चलो इक नयी
उड़ान भरते हैं,
अनंत आकाश की
अनवरत यात्रा पर चलते हैं,
अपने पंखों की
मजबूती को आज़माते हैं,
चलो कहीं दूर देश चलते हैं।

स्वप्निल संसार
नया बुनते हैं,
भूत और भविष्य को
पीछे छोड़ते हैं,
सागर की गहराई में डूबते हैं
सच्चे मोती तलाशते हैं,
चलो कहीं दूर देश चलते हैं।

मन की गहराई
आँकते हैं,
खुद को थोड़ा
और समय देते हैं,
प्रकृति को और
नज़दीक से देखते हैं,
कल-कल करती नदियों
का संगीत फिर सुनते हैं,
चलो कहीं दूर देश चलते हैं ।

विहान में ...
ओस की बूँदों को
आज गिनते हैं,
सूरज की पहली
किरण को आज देखते हैं,
पक्षियों से आज फिर राग
नया सुनते हैं,
चलो कहीं दूर देश चलते हैं।

आसपास सुकून
थोड़ा ढूंढते हैं,
समय की रफ़्तार
कम करते हैं,
मन के बहाव में
आज फिर बहते हैं,
चलो कहीं दूर देश चलते हैं।

रचयिता
डॉ0 रंजना वर्मा,
प्राथमिक विद्यालय बूढ़ाडीह-1,
विकास खण्ड-भटहट, 
जनपद-गोरखपुर।

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