अब और नहीं

और नहीं.... अब और नहीं...
तिरंगे लिपटे शव अब और नहीं ...
मुँह अंधेरे घर में घुसकर...
दिए बुझाना अब और नहीं..
पड़ोसियों की शह पर मौत का ..
तांडव न होंगे देंगे...
मातृभूमि पर सर्वस्व है अर्पण..
पर दुश्मन की हद अब और नहीं...
चीख रहा हिंदुस्तान मेरा...
रो रही है भारत माँ...
हर एक पल का खौफ में जीना..
सह सकता अब और नहीं..
वो बेटा जो घर से निकला..
सतरंगी सपने लेकर...
200 किलो बारूद से उसके..
ख्वाब तोड़ना अब और नहीं...
आज़ाद हमारे भारत के...
नन्हें-मुन्ने मासूमों के..
मुस्कान बिखेरते चेहरों पर..
दुःख के आँसु अब और नहीं...
अब और मुंबई, पठानकोट
या उरी नहीं  हम झेलेंगे..
एक-एक साँस का बदला..
सौ-सौ साँसों से  लेंगे...
कारगिल भूल चुके हो तुम..
सन 71 भी भूल गए..
बच्चे, बूढ़ों और जवानों की..
मौत पर रोना अब और नहीं....
कितना हृदय विदारक होगा..
तबाही का वो मंज़र...
मेरे मुल्क की सड़कों पर..
लाशों के ढेर अब और नहीं..
वीर जवानों की शहादत को...
व्यर्थ न जाने देंगे...
तुम्हारे दस कायरों पर ..
हमारे एक विक्रम भारी होंगे..
हमारे ही घर में घुसकर..
आग उगलना अब और नहीं..
आज़ादी से झेल रहे हैं..
हम तुम्हारी ज्यादतियाँ..
वतन की सुरक्षा पर हमला..
और नहीं.... अब और नहीं...
तिरंगे लिपटे शव अब और नहीं ...

रचयिता
पूजा सचान,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मसेनी(बालक) अंग्रेजी माध्यम,
विकास खण्ड-बढ़पुर,
जनपद-फर्रुखाबाद।

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