शत-शत नमन

ना मुझे आज कुछ भा रहा
ना दिल को कुछ लुभा रहा
मन में इतनी पीड़ा है
यह वेदना मै कैसे सह पाऊँ
इन आँखों में बस आँसू हैं
क्या कहूँ और क्या छुपाऊँ
मन इतना व्यथित है हो चुका
इन अपनों को खोने के बाद
अंग-अंग है रो रहा
शहीदों के सोने के बाद !!

बार-बार मन में आती है
याद मझे उन बच्चों की
उन माँओं की उन पिताओं की
उन भाई-बहन के रिश्तों की
सब छोड़ आज तुम चले गए
सब झेल लिया तुमने खुद पर
कैसा  एहसान ये कर गए
तुम अपने भारतवर्ष पर
हम ऋणी रहेंगे सदा तम्हारे
शत-शत नमन हैं कर रहे !!

प्रेम दिवस के अवसर पर
छोड़ दी प्रेयसी भी तुमने
भारत माँ  तुम्हें ज्यादा प्रिय थीं
चले गए तम उनसे मिलने
भारत माँ विनती है तुमसे
अपने वीरों को लाड़ तुम देना
बहुत दर्द सह के आये हैं
बहुत जख्म शरीर पर लाये हैं
दर्द तुम इनके सब हर लेना
जख्म सभी इनके भर देना!!

कलम मेरी ना बढ़ती है,
अब दर्द ये इतना लिखने को
ना लिख पायेगी यह नाम वीरों के
खुद को तुच्छ समझती है
झुकी खड़ी है नतमस्तक हो
उनके चरण चूम लेने को
रो पड़ा कागज का टुकड़ा
यह दर्द ना उससे कहा  गया
सिकुड़ा सा सहमा सा
मेरी कॉपी में है जड़ा हुआ
पर गौरवान्वित है  की उस पे
वो एक कहानी लिखी गई है
दुनिया याद रखेगी  जिसे
वो निशानी  लिखी गई है!!

रचयिता
जैतून जिया,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय गाजू,
विकास खण्ड-कछौना,
जनपद-हरदोई।

Comments

  1. आपके भावों को नमन। सैल्यूट ग्रेट जैतून जिया जी। सतीश चन्द्र "कौशिक"

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