नव बसंत

नव पल्लव, कुसुमित होकर, झूमे हैं डाली-डाली,
नूतन कलियाँ प्रस्फुटित हो, ओढ़ें चादर रंगीली।
उन कलियों, उन फूलों पर; भँवरे हैं गुँजन-गुंजन।
खग और विहग प्रफुल्लित हो, झूमें हैं कुंजन-कुंजन।
मस्त कोयलिया इत-उत डोले, करे है कुहू-कुहू।
बुलबुल और पपीहे की वाणी, गूँजे है पीहू-पीहू।
रंग-बिरंगी तितली मण्डराती, हैं क्यारी-क्यारी।
चहुँओर फैली हरियाली, धरती है न्यारी-न्यारी।
महक उठी हर एक बगिया की, सुंदर-सुंदर क्यारी।
खेतों और मैदानों तक, फैली हुई है हरियाली।
धरती ने ओढ़ी है चूनर, फिर से धानी-धानी।
सरसों ने तानी है उन पर, चादर पीली - पीली।
सूरज ने भी नेत्र खोलकर, नभ में ली अँगड़ाई।
धरती पर बागों में कलियाँ, छिपती फिरतीं शरमाई।
उमड़-घुमड़कर बादल ने भी, लुका-छिपी है खेली।
सागर की उठती लहरों ने, राग-तरंगें छेड़ी।
मध्यम-मध्यम सरिता बहकर, नव सन्देश है लाती।
फूलों की खुशबू से महकी, हवा भी सरगम गाती।
मस्त बहारों के मौसम में, तन- मन है हर्षाया।
देख छटा धरती की सुंदर, उमंग मन में छाया।
प्रकति की गोद में खुश है, हर जीवन, हर प्राणी।
नव बसंत है आया, देखो नव बसंत है छाया।।

रचयिता
सुप्रिया सिंह,
इं0 प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय-बनियामऊ 1,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा,
जनपद-सीतापुर।

Comments

  1. सुन्दर बासंती वर्णन।
    स चन्द्र कौशिक

    ReplyDelete
  2. सुन्दर अभिव्यक्ति
    रीता गुप्ता

    ReplyDelete

Post a Comment

Total Pageviews