बारूदी केसर

केसर अब बारूदी हो गया कश्मीर की घाटी पर।
फिर बेटे बलिदान हो गए कश्मीर की माटी पर।।
नहीं चाहते कोई सांत्वना, नहीं चाहिए कोई निंदा।
युद्ध चाहिए गद्दारों से बचे न एक आतंकी
जिंदा।
कब तक शीश
कटाओगे तुम कश्मीर की माटी पर।
फिर बेटे बलिदान हो गए..
हिमगिरि के उतुंग शिखर पर छाया है शैतानों की।
कितनी गाथा और चाहिए वीरों के बलिदानों की।
कितनी गाथाएँ लिख दूँ अब वीरों की परिपाटी पर।
फिर बेटे बलिदान हो गए...
उन श्वेत कपोतों की भाषा बन्दूकों की नलियाँ क्या जानें।
शिशु की मर्माहत क्रन्दन को दुश्मन की गलियाँ क्या जानें।
अपनी अभिव्यक्ति को कैसे अब प्रिया लिखेगी लिखेगी पाती पर।
फिर बेटे बलिदान ....
तुम पंचशील की माला ले बस गिनते रहना मोती को।
वे हर बार बुझा देगे आशा की पावन ज्योति को।।
जो कायरता से वार करें गोली मारो उस छाती पर।
फिर बेटे बलिदान हो गए कश्मीर की माटी पर।।

रचयिता
राजकुमार शर्मा,
प्रधानाध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय चित्रवार,
विकास खण्ड-मऊ,
जनपद-चित्रकूट।

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