दीपक जला देना

भावना की तेल से, प्रेम का दीपक जला देना,
प्रेम के नव प्रकाश से, तम तिरोहित करा देना।

रोशनी की हो छटा, काली अमावस की रात में,
दीप संग चमके जगत, हृदय कली खिला देना।

हो संकल्प अज्ञान के अंधियारे से लड़ने का,
मानवता की अलख तुम जन-जन में जगा देना।

मिले सदा मुस्कान के मोती शब्दों में झंकार लिये,
दिल से दिल का तार जुड़े ऐसा वन्दनवार  लगा देना।

धर्म पथ पर बढ़ें निरन्तर, शुचिता का भाव लिये,
दीवाली प्रेम सौहार्द की, अम्बर तक सजा देना।

रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
डोभी, जौनपुर।

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