बचपन में खो जाऊँ मैं

मन करता है खुले गगन में
पंछी बन उड़ जाऊँ मैं
इंद्रधनुष के रंगों से
चुनरी अपनी सजाऊँ मैं
चिंता सारी छोड़ के फिर से
बचपन में खो जाऊँ मैं
मिट्टी में फिर खेलूँ कूदूँ
मिट्टी के महल बनाऊँ मैं
तितली के पीछे दौडूं भागूँ
कभी खुद तितली बन जाऊँ मैं
परियों के सपने लेकर
धरती पर सो जाऊँ मैं
कागज़ की नाव बनाकर
बारिश में फिर खेलूँ मैं
ठेठ दोपहरी नज़र बचाकर
सखी से मिलने जाऊँ मैं
खेल गृहस्थी का खेलूँ
चूल्हा एक बनाऊँ मैं
गुड़िया की शादी करने को
गुड्डा एक बनाऊँ मैं
शाम ढले तो घर को आऊँ
माँ तेरे आंचल में छुप जाऊँ मैं
कहानी सुनते-सुनते फिर
नींद में कहीं खो जाऊँ मैं
चिंता सारी छोड़ के फिर से
बचपन में खो जाऊँ मैं।

रचयिता
वंदना प्रसाद,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कैली,
विकास खण्ड-चहनियां,
जनपद-चंदौली(उत्तर प्रदेश )

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