धन्वंतरि जन्मोत्सव

    कार्तिक मास सभी मासों में उत्तम व श्रेष्ठ माना गया है। इस मास में भारतीय उत्सवों की श्रृंखला निरन्तर गति से चलती रहती है। पुराणों में यह स्वीकारा गया है कि अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्रमंथन किया था जिसमें मंदराचल पर्वत को मथानी व शेषनाग वासुकि को  मथानी की रस्सी के रूप में प्रयुक्त किया गया। मंथनोपरानत निकले हुए चतुर्दश रत्नों में से वैद्यराज धन्वतरि भी एक रत्न थे जो अपने हाथों  मे  सुधा का कलश लिए हुए थे। यह शुभ तिथि कार्तिक मास की त्रयोदशी थी। इस कारण इस तिथि को 'भगवान धन्वंतरि' का जन्मदिवस कहा जाता है।

    धन्वंतरि आरोग्य शास्त्र के प्रथम प्रयोक्ता तथा आयुर्वेद के प्रथम प्रर्वतक थे। शायद इसलिए ही आयुर्वेद पर आस्था रखने  'भगवान धन्वंतरि' को अपने इष्टदेव के रूप में पूजकर अखिल विश्व के कल्याण की कामना  रखते हैं।

       जिस प्रकार एक ही तिथि को राम-लक्ष्मण, भरत-शत्रुघ्न सबका जन्म हुआ था किंतु उस जन्म की नौवीं तिथि को 'राम नौवीं' कहकर सम्बोधित किया जाता है उसी प्रकार यद्यपि सभी रत्नों का प्रादुर्भाव इसी दिन हुआ होगा किंतु 'आरोग्य' ही जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सुख माना गया है। इसलिए भगवान धन्वंतरि को इस दिन का प्रमुख अवतार घोषित किया गया है।
  आरोग्य के प्रणेता 'भगवान धन्वंतरि' अपने हाथों  में अमृत घट लेकर अवतीर्ण हुए थे जो कि प्राकारान्तर से यह प्रकाशित करने में समर्थ  तथ्य है कि आरोग्य और आयुर्वेद ही हमें अमृतत्व की ओर ले जा सकता है।
  आज हम यह अनुभव कर सकते हैं कि अन्य किसी भी पद्धति की दवाइयाँ यद्यपि  शीघ्र लाभकारी हैं किन्तु उनके नकारात्मक प्रभाव भी हैं जबकि इसके विपरीत आयुर्वेद अपने में वह जीवंत व श्रेष्ठ पद्धति है जो भले ही रोगी पर अपना प्रभाव देर में छोड़े किन्तु रोगी को निर्मूल करना ही उसकी विशेषता है।
  हम सब इस धन्वंतरि जन्मोत्सव पर्व को 'धन तेरस' कहकर माता लक्ष्मी के आने की प्रारम्भिक भूमिका का पर्याय मानते हैं। इस दिन घरों  में सोने-चाँदी अथवा पीतल-ताँबे का सामान खरीदने की परम्परा है जिसे हम 'भगवान धन्वंतरि' के सुधा कलश से जोड़ते हैं।
  धनतेरस निश्चित रूप से  धन प्राप्ति अथवा धन संचय का  दिवस भी है ।
आज का दिन हमें यह संदेश देता है धन भी जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
हम समाज में देखते हैं कि पूर्ववत अविकल इन्द्रियों, पूर्व जैसा नाम, पूर्व जैसी अकुंठित बुद्धि और पूर्व जैसी वाणी होते हुए भी अर्थ की ऊष्मा समाप्त हो जाने पर वही व्यक्ति स्वयं में वह नहीं रह जाता है अर्थात् उसकी पहचान खो जाती है।
    जैसा कि 'नीति वचनों' में कहा गया है-----
तानीनि्द्रयाण्यविकलानि,तदेव नाम
सा बुद्धिरप्रतिहता,वचनं तदेव।
अर्थोष्मणा विरहतिः पुरुषः क्षणेन
सोsप्यन्न एव भवतीति विचित्रमेतत्।।
 अतः हम भगवान धन्वंतरि का जन्मदिवस न केवल आरोग्य,अमरत्व वरन् धन सम्पन्नता प्राप्ति के रूप में भी मनाते हैं।
धनतेरस अर्थात् धन्वंतरि जन्मदिवस पर  'भगवान धन्वंतरि' को प्रणाम।

लेखिका
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।

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