बाल दिवस

बच्चों से ही हैं सारे घर,
बच्चों से ही अपनापन है।
बच्चे हैं तो हैं विद्यालय....
और इन्हीं की खातिर हम हैं।
बच्चों से ही खेल खिलौने,
बच्चों से दिन रात सलोने।
बच्चे हैं तो हैं बाज़ार....
दूर इन्ही से सारे ग़म हैं।
बच्चों से ही सपने सारे,
इनसे ही सारा संसार...
बच्चे हैं तो कोलाहल है,
जीवन के सन्नाटे कम हैं।
बच्चों से ही हैं मुस्कानें,
इनसे ही रौनकें बहार......
बच्चे हैं तो सुबह सुहानी,
और नहीं तो दिन भी तम है।
बच्चों से खुशियाँ हर ओर
इनसे ही जीवन में शोर....
बच्चे हैं तो "बाल दिवस" है
बच्चों से दुनिया अनुपम है।
                         
रचयिता
निशी श्रीवास्तव,
प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय रमपुरवा,
विकास खण्ड-बी0के0टी0,
जनपद-लखनऊ।

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