आलोकित हो तमसावृत पथ

सत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक राम पिता की दी हुई वनवास अवधि को पूर्ण कर पुनः अपने पितृ धाम अयोध्या में लौट आये। उनके इसी प्रत्यागमन में आनंदित होकर अयोध्यावासियों ने दीपमालिकाओं से उनका स्वागत किया। अयोध्यावासियों ने अपने द्वार-द्वार पर दीपों की अवली सजाई तभी से इस परम्परा को पर्व का रूप मिला।
सहस्रों वर्ष बीत जाने के बाद भी आज भी हम दीपों की अवली सजाकर 'दीपावली पर्व' धूमधाम से मनाते हैं।
    मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम  के शुभागमन के अतिरिक्त इस दिन धन की अधिष्ठात्री देवी माता महालक्ष्मी दीप्तिमान रत्न के रूप सागर के गर्भ से उद्भभूत हुईं थीं जिन्हें दैत्य राज बालि के.बन्धन से भगवान विष्णु ने वामनावतार धारण कर मुक्त कराया था। देवी लक्ष्मी जी के साथ सिद्धि प्रदाता भगवान गणेश के पूजन का भी विधान है। इसी दिन  'धनाधीश कुबेर' की भी पूजा की जाती है।
   जब माता लक्ष्मी कंचन कलश लेकर अपनी दिव्य आभा सम्पूर्ण भू मंडल पर बिखेरती हुई अवतरित होतीं हैं तब हम सब पूर्ण श्रद्धा ..भक्ति-भाव के साथ घर-आँगन को दीपों के झिलमिल प्रकाश से जगमगाकर उनका सत्कार करते हैं।

आज हमारे देश के समक्ष एक गम्भीर चुनौती है कि हमारा अरबों-खरबों का धन 'स्विस बैंक' जैसे बैंकों में असुर राज की लक्ष्मी की तरह निष्क्रिय पड़ा है और हम उसके उपयोग का सही रास्ता नहीं निकाल पा रहे हैं। हमें इस दिशा में भी प्रयत्नशील रहना होगा तभी महालक्ष्मी का पूजन सार्थक होगा।

     आइए! हम इस दिन ये संकल्प लें कि परिश्रम से अर्जित धन का ही उपभोग  न केवल अपने को सुखी बनाने में करेंगे अपितु उसका कुछ अंश दीनों,गरीबों और असहायों पर भी व्यय करेंगे।
हमारी यही मंगल कामना है-----माँ!  आप अपने हर भक्त पर अपनी कृपा बनायें रखें....
देश में धान्य के भण्डार भरे रहें..
सबको आपका साथ मिले...
हर आँगन में खुशियों के दीप जलें।
  "सिद्धि--बुद्धि प्रदे देवि।
   भक्ति --मुक्ति प्रदायनी।
    मन्त्र--मूर्ति। सदा देवि।
     महालक्ष्मी। नमोस्तुते ते।।

लेखिका
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।

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