पुरस्कार का पुष्पहार

पथरीली बंजर धरती पर,
आशाओं के बीज डाले हैं।

प्रतिकूल हवा के झोकें हैं,
तपन गगन की भारी है।

ये चुनौतियाँ हैं चिरपरिचित,
हम कहाँ हारने वाले हैं।

प्रतिमान गढ़े हमने कितने,
कितनी बाधाएँ, हमसे हारी हैं।

नवप्रभात में नवअंकुर जब,
पुष्पित हो मुस्काते हैं।

"पुस्कार का पुष्पहार" तब,
स्व-अर्पण करने की बारी है।

रचयिता
निधि लता सिंह,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय नईयापार खुर्द,
विकास क्षेत्र-पिपराइच, 
जनपद-गोरखपुर।

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