वो हैं प्रहरी तो ये रात दीवाली है

हर दिया उन्हीं के नाम से रोशन,
हर दिया उन्हें नव-जीवन दे,
हर दिया बढ़ाये उनकी जीवन-ज्योति को,
जो परोपकारार्थ निज जीवन दे।

दीपोत्सव के पर्व पर
जब सब कर्मभूमि को छोड़ के,
निज जन्मभूमि पर आते हैं,
स्वजनों के स्नेह मे सब
सराबोर हो जाते हैं,
हर्षित होकर प्रेममग्न हो
दीप से दीप जलाते हैं,
तब....
तब कोई नन्ही सी गुड़िया
अपना फोन उठाकर कहती है,
पापा! तुम अबकी भी न आये,
अब कौन पटाखे लायेगा???
मुझको लेकर गोदी में
अब कौन दिये जलवायेगा???
मम्मी भी खोई-खोई  सी रहती
जाने क्या सोचा करती हैं???
मुझको लगता है शायद वो भी
राह तुम्हारी तकती हैं।

माता जब दीप जलाती है
दीपों में अपने लाल की छवि ही पाती है,
बेटी को समझाती है पर
पर खुद सुन आवाज पटाखों की
मन ही मन घबराती है।

पिता पुत्र के बिना अकेला
पर निज बेटे पर अभिमान करे,
वो हैं प्रहरी तो ये रात दीवाली है
वरना रात अमावस काली है।
एक "दिया" कर दिया समर्पित भारत माँ को,
सीना चौड़ा कर खुद पर मान करे।

ये वीर हमारे "दीप-कतार" सदृश
हर अमावस रात दीवाली करते हैं
खुद जलते रहते है हरदम
और वतन को रोशन करते हैं।

ये "दीप" सदा रोशन रहे,
इनका प्रकाश दिन-रात बढ़े,
जिनसे बढ़ता है देश का मान,
उनसे भारत भूमि सदा आबाद रहे।

      सभी भारतवासियों को दीवाली की अनन्त हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ
          
              वन्दे सदा स्वदेशम् ।
                 वन्दे मातरम्

                    
रचयिता
श्वेता मिश्र,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय किशोरपुर,
विकास क्षेत्र-अमाँपुर,
जनपद- कासगंज।

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