महाशिवरात्रि

अरसात सवैया(7भगण1सगण)

लोभ न काम न द्वेष न द्वंद,

                 नहीं मन क्रोध कुचाल न जिनके।

वृत्ति कुवृत्ति कुभाव अभाव,

                  सुबुद्धि सुसंग विवेकहु जिनके।।

निर्भय वे अनुशासित नेत्र,               

                    सदा गुण दृश्य निहारत जिनके।

शील दया करुणा "निरपेक्ष"

                   नमामि उन्हें उर में शिव जिनके।।

 

 ***  ध्यान (चौपाई छंद) ***

मंगल  मूरत  शिव  त्रिपुरारी।

नाम   जपें   रघुवीर   मुरारी।।

वाम उमा, छवि छाजत ऐसे। 

सावन  में  घन-विद्युत  जैसे।।

ज्योतिरलिंग महा शिवकाशी।

रम्य   मनोहर   रूप  उदासी।।

चंदन भाल  त्रिपुण्ड सुहाए।

केहरि  चर्म  भभूत लागाये।।

मस्तक चंद्र जटा लट गंगा।

हाथ त्रिसूल उरोज निहंगा।।

व्याल फणीन्द्र गले लपटाए।

सूल-अनी  डमरू  लटकाए।।

अंतः करण विवेक विधाता।

करत कुकर्म हृदय धड़काता।।

देव   महेश  कृपालु  उदारा।

ध्यान धरै "निरपेक्ष" तुम्हारा।।


रचयिता

हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।

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