36/2025, बाल कहानी- 01 मार्च


बाल कहानी- जीवन दान
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रामू काका के परिवार में उनके दो बेटे रहते थे। दोनों ही बेटे बहुत ही समझदार और होनहार थे। जब बड़े बेटे की शादी की बातचीत चली, तो उसकी शादी एक डॉक्टर की लड़की से हो गई। लड़की बहुत ही समझदार और होशियार थी। उसका नाम मानसी था। जल्दी ही मानसी घर में सबके साथ घुल-मिलकर रहने लगी।एक दिन सभी लोग पिकनिक पर गये। वहाँ पर सबने खूब मजे किए। तभी वहाँ देखा कि एक छोटा-सा हिरण का बच्चा, जिसके पैर में चोट लगी हुई थी, दर्द से परेशान था। झट से रामू काका के बड़े बेटे ने अपनी पत्नी से कहा, "तुम इसके लिए कुछ करो.. तुम तो डॉक्टर हो।" "इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?" रामू काका की बहू ने तुरन्त जवाब दिया, "मैं तो सिर्फ इन्सान की डॉक्टर हूँ। यह तो एक जानवर है।" लेकिन तभी रामू काका ने अपनी बहू मानसी से कहा, "बेटा! चोट सभी को समान ही लगती है। खून भी बहता है, तो हम इसके चोट में मरहम तो लगा ही सकते हैं।" मानसी ने तुरन्त अपने पर्स से एक मरहम निकाला और उस हिरण के बच्चे के पैर में लगाकर पैर फैला दिया। छट से उसका दर्द कम हो गया और वह खुशी से उछलने लगा। सभी लोग मानसी की तारीफ करने लगे। रामू काका तो सबसे कहते फिरते थे कि, "मेरी बहु बहुत ही अच्छी और होनहार है।" 
एक दिन की बात है कि मानसी एक मीटिंग में जा रही थी। वह गाड़ी खुद ही ड्राइव कर रही थी। तभी अचानक देखती है कि रास्ते में एक जगह अनेक लोग एक आदमी को घेरे हुए भीड़ लगाए हुए खड़े हैं। बड़ी मुश्किल से मानसी अपनी गाड़ी आगे निकाल सकी और मीटिंग में पहुँच पायी। तभी उसे पता चला कि वहाँ पर कोई एक्सीडेंट हो चुका है। मानसी अपनी मीटिंग की परवाह किए बिना उस एक्सीडेंट वाले स्थान पर गयी और देखा कि यह तो एक्सीडेंट भयानक हुआ है। बस क्या था? उसने झटपट इलाज किया, जबकि उसके साथी डाक्टर उसे ऐसा करने से मना करने लगे। तब मानसी ने सबको समझाया कि, "ये तो हमारा फर्ज है कि किसी घायल व्यक्ति की मदद करें। चाहे वह व्यक्ति हमारा अपना हो या किसी का भी हो। किसी न किसी का तो वह है ही और जब हम सब एक भारत माँ की सन्तानें हैं तो सब हमारे हैं और हम सबके हैं।" सभी ने तालियाँ बजायीं और मिलकर उस व्यक्ति का बहुत अच्छे से इलाज करवाया। जब वह व्यक्ति खतरे से बाहर आ गया, तभी एक छोटी से बच्ची बोलती हुई आयी, "पापा! पापा! आप ठीक हो न?" 
उसके पापा उस छोटी-सी बच्ची के सब कुछ थे। बच्ची डॉक्टर के पैर पकड़कर उन्हें 'धन्यवाद' देती है। वह बताती है, "ऐसे ही एक बार मेरी मम्मी का भी रास्ते में एक्सीडेंट हो गया था। डर की वजह से किसी ने उन्हें डॉक्टर तक नहीं पहुँचाया था और उनकी मृत्यु हो गई थी। आज आप लोगों ने मेरी बहुत बड़ी मदद की है।" डॉक्टर ने बोला, "नहीं, बेटा! ये तो हम सबका फर्ज होना चाहिए। अगर किसी को किसी भी प्रकार की चोट लगती है, तो उसकी मदद करे, उसे अस्पताल ले जाएँ। ऐसा हमारे मोटर साइकिल एक्ट के सेक्शन 132 में कहा भी गया है।" सभी लोग बहुत खुश थे क्योंकि सबके सहयोग और जागरुकता से आज एक बिना माँ की बच्ची के पिता की जान बच गयी थी।

#संस्कार_सन्देश -
सभी लोग अपना कर्तव्य-पालन करें तो किसी को भी समय पर और सही इलाज के द्वारा जीवन दान मिल सकता है।"

लेखिका
#अंजनी_अग्रवाल (स०अ०)
सरसौल, कानपुर नगर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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