25/2025, बाल कहानी- 15 फरवरी


बाल कहानी - हार से जीत की ओर
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बेलापुर गाँव में दो मित्र रहते थे, सोहन और मोहन। दोनों अच्छे धावक थे। वे हर रोज़ दौड़ का अभ्यास करने खेल के मैदान में जाते थे। उनका सपना था कि वे अगले माह होने वाली जिला स्तरीय दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे और उसे जीतकर अपना व अपने गाँव का नाम रोशन करेंगे। अभ्यास के दौरान मोहन अपनी हार को सहर्ष स्वीकार कर लेता और अपनी कमियों को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत करता, किन्तु सोहन अपनी हार को कभी स्वीकार नहीं कर पाता था। वह अपनी हार के लिए हमेशा किसी अन्य को दोषी ठहराने का प्रयास करता। कभी-कभी वह मोहन को भी खरी-खोटी सुनाता और अपनी हार के लिए उसे ज़िम्मेदार ठहराता। हालाँकि सोहन एक अच्छा धावक था, किन्तु सोहन के इस व्यवहार से मोहन को बहुत दुःख होता।
कुछ दिनों बाद गाँव में सबसे तेज़ धावक चुनने के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। सोहन इस प्रतियोगिता को किसी भी कीमत पर जीतना चाहता था ताकि वह जिला स्तरीय दौड़ प्रतियोगिता में भाग ले सके। इसके लिए उसे गाँव के सभी धावकों से जीतना था। खासकर मोहन से, क्योंकि मोहन एक अच्छा धावक था। सोहन ने अपनी जीत पक्की करने के लिए गलत रास्ता चुना। उसने दौड़ शुरु होने से कुछ समय पहले मोहन को एक नशीला पदार्थ पानी में मिलाकर पिला दिया ताकि मोहन अपनी पूरी क्षमता से न दौड़ सके। जैसा सोहन ने सोचा था, ठीक वैसा ही हुआ। नशीले पानी के असर के कारण मोहन आधे रास्ते में ही गिर गया और सोहन ने यह प्रतियोगिता जीत ली। उसकी जीत से यह तय हो गया कि अब वह जिला स्तरीय दौड़ में गाँव का प्रतिनिधित्व करेगा।
जिला स्तरीय दौड़ प्रतियोगिता का दिन भी आ गया। सभी ने सोहन का हौंसला बढ़ाया किन्तु सोहन इस दौड़ में कोई भी स्थान प्राप्त नहीं कर सका। वह बहुत उदास हो गया। तभी मोहन उसके पास आया और बोला-, "सोहन! निराश मत हो। हम कड़ी मेहनत करेंगे और अगले वर्ष अवश्य जीतेंगे।" मोहन की यह बात सुनकर सोहन फूट-फूटकर रोने लगा। उसे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। उसने पूरी बात मोहन को बता दी। मोहन ने मुस्कराते हुए कहा-, "कोई बात नहीं सोहन! मैं खुश हूँ कि तुमने अपनी गलती स्वीकार की। हार और जीत खेल का हिस्सा है। एक हारता है, तभी तो दूसरा जीतता है। हार भी हमें बहुत कुछ सिखाकर जाती है। उसे स्वीकार करना चाहिए। यदि तुम भी ऐसा करोगे तो बेहतर से बेहतर होते जाओगे।" दोनों मित्र एक-दूसरे के गले लगकर रोने लगे और सभी गिले-शिकवे आँसुओं के साथ बह गए।

#संस्कार_सन्देश -
हार भी हमें बहुत कुछ सीखती है। अतः हार-जीत की परवाह किए बिना सदैव ईमानदारी से श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करना चाहिए।

कहाननकार-
#तिलक_सिंह (स०अ०)
उ० प्रा० वि० फुसावली (कम्पोजिट 1-8) वि० क्षे० गंगीरी, अलीगढ़

कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया 
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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