31/2025, बाल कहानी- 22 फरवरी
#दैनिक_नैतिक_प्रभात - 31/2025
22 फरवरी 2025 (शनिवार)
#बाल_कहानी - #संवाद
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मोहन और कविता सुबह सोकर जैसे ही उठे, मोहन ने कविता से कहा-, "जल्दी से खाना बना देना, नहीं तो मुझे विद्यालय जाने में देर हो जाएगी।" कविता ने कहा-, "रात्रि-भर मुन्ना ने सोने न दिया है और तुम हो कि तुम्हें उठते ही हमेशा ही जल्दी रहती है। एक तुम्ही मास्टर हो क्या?" यह सुनकर मोहन एक पल के लिए चुप हो जाता है।
मोहन प्राथमिक विद्यालय का एक शिक्षक था। वह अपनी पत्नी कविता और इकलौते पुत्र के साथ अपने घर से पाँच सौ किलोमीटर दूर दूसरे जिले में नौकरी करता था। विद्यालय में समय से पहुँचकर बच्चों को पूरी तन्मयता से पढ़ाता था। पूरे गाँव के लोग उसकी खुले दिल से प्रशंसा करते थे। आखिर करते भी क्यों न? बच्चों से अपनापन, स्नेह और अभिभावकों के साथ मित्रवत् व्यवहार से मोहन ने सबको अपना बना लिया था।
लेकिन आज पत्नी कविता गुस्सा हो गई। मोहन ने बड़े प्यार से अपनी पत्नी से कहा-, "अरे! ऐसा नहीं है। मैं जानता हूँ कि तुम हमेशा समय से सारे कार्य करती हो और मुन्ना की देख-भाल भी करती हो।" कविता ने कहा-, "नहीं..नहीं तुम्हारी नजरों में तो मैं ही लापरवाह हूँ।"
मोहन ने कहा-, "तुम मेरी बातों का गलत मतलब निकाल रही हो। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। मैंने समय से खाना बनाने के लिए ही तो कहा है?" मोहन के बार-बार कहने पर भी कविता न मानी और जाकर बिस्तर पर लेट गयी।
मोहन को विद्यालय जाने में देर होने लगी तो वह फटा-फट तैयार होकर विद्यालय के लिए निकल पड़ा। आज स्कूल में बच्चों को पढ़ाने में उसका मन नहीं लग रहा था। बच्चों की छोटी-छोटी बातों पर उसको गुस्सा आ रहा था। पूरा दिन बेमन से काम करते हुए दिन बीत गया। मोहन मन ही मन सोचने लगा कि-, "व्यर्थ ही मैंने कविता को सुबह जल्दबाजी के लिए कहा। आखिर वह हमारे परिवार के लिए सब कुछ तो करती है। विद्यालय से घर चलकर उससे माफी माँग लूँगा।"
इधर मोहन के बिना भोजन किये चले जाने के बाद कविता को लगा कि-, "कहीं मुझसे भूल तो नहीं हो गई। जल्दबाजी के लिए ही तो कहा था। मैं तो बेवजह उन्हें सुनाने लगी। नौकरी हो या कोई भी काम-धन्धा, समय से पहुँचना बहुत जरुरी है।" कविता ने महसूस किया कि कमी उसकी भी हो सकती है। शाम को जैसे ही मोहन वापस आयेगा, वह अपने गुस्से के लिए उनसे माफी माँग लेगी।
मोहन के आने का वक्त हो चुका था।कविता दरवाजे पर ही मोहन का इन्तजार कर रही थी। जैसे ही मोहन घर पहुँचा, वैसे ही दरवाजा खोलते ही कविता और मोहन दोनों के मुँह से एकाएक निकला-, "सॉरी!" मोहन ने कहा-, "तुम्हारी पीड़ा को मैं नहीं समझ सका, मुझसे भूल हुई।" कविता ने कहा-, "आपकी कर्तव्य-परायणता को मैं नहीं समझ सकी, मुझे माफ़ कर दीजिए।" फिर दोनों की आँखों से अश्रु-धारा बह निकली। दोनों की विवेकपूर्ण सोच और आपसी संवाद ने उनकी समस्या का समाधान कर दिया था।
#संस्कार_सन्देश -
प्रत्येक विवाद का निदान संवाद है। बशर्ते दोनों पक्षों में झुकने का हुनर होना चाहिए।
लेखक
#दीपक_कुमार_यादव (स०अ०)
प्रा० वि० मासाडीह
महसी, बहराइच (उ०प्र०)
कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
बहुत सुंदर कहानी
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