धरती की धानी चुनरिया

गायो रे मंगल गीत को गायो रे
छायो रे ऋतु बसंत की छायो रे

मंद - मंद धरती मुस्कायी, खिली कली फूल बन आई।
खेतों में पीली सरसों छायी, चारों ओर धूप खिल आई।
मुस्कायो रे कण - कण धरती का मुस्कायो - -
गायो रे मंगल गीत को गायो रे- - -

ज्ञान की देवी माँ शारदा आई, भरने को अज्ञानता की खाई।
आदि शक्ति के श्वेत रूप से, सृष्टि में सुंदरता भर लायी।
बजायो रे वीणा की मधुर धुन बजायो - -
गायो रे मंगल गीत को गायो रे - - -

जब माँ सीता की खोज करायी, वन - वन भटके दोनों भाई।
माँ शबरी की कुटिया आई, देख के राम को शबरी हर्षायी,
अरे खायो रे शबरी के झूठे बेर खायो रे - -
गायो रे मंगल गीत को गायो रे - - -

नीले अंबर में धूप खिल आयी, माघ मास की पंचमी आई।
ऋषि पंचमी यह  कहलाई, धरती को धानी चुनरी उड़ाई।
हर्षायो रे जन - जन का मन हर्षायो - - -
गायो रे मंगल गीत को गायो रे
छायो रे ऋतु बसंत की छायो।।

रचयिता
अर्चना अरोड़ा,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बरेठर खुर्द,
विकास खण्ड-खजुहा,
जनपद-फ़तेहपुर।

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