मन मतंग

ओ छाया तेरे मन का साया
दस्तूर नहीं है ये जीवन शैली
शीतलता ये राग-विलाप का
हठबोली-सी तू है मन मतंग,

कण-कण उजड़े पवन हठीले
सरगम तान-धुन तेरे तार जैसे
प्यासा है पानी बिन सागर संग
तब भी उड़े आसमान में पतंग,

जर्जर-जर्जर से तपता सूरज
थर-थर काँपता है ओला-बर्फ
हिमनुमा पर्वत का है उफान
आकाश-गंगा तारों का तरंग।
             
रचयिता
चैतन्य कुमार,
सहायक शिक्षक,
मध्य विद्यालय तीरा,
ग्राम+पत्रालय:- तीरा खारदह,
प्रखण्ड:- सिकटी,
भाया:- कुर्साकाँटा,
जिला:- अररिया,
राज्य:- बिहार।

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