उम्मीद की किरण

अब समझ आ गया है संसार को शायद
बेटी ही है उम्मीदों की वो किरण
जो माता-पिता को अंधियारों में
नही छोड़ेगी भटकने को।

नहीं छोड़ेगी बेआसरा
जब भी आएगी परशानी
मुस्करा के कहेगी
मैं हूँ न!

बेटों के व्यवहार से दुखी
माता-"पिता को तड़पते देख
सबकी आँखें खुल चुकी हैं।

तभी तो अब जश्न मनाया जाने लगा है
नन्हीं बिटिया के स्वागत में
फूल बिछाए जाने लगे हैं।

पढ़ाया जाने लगा है बेटियों को भी
हर अवसर दिए जा रहे हैं अब
शान बन रही हैं हर संस्था की।

उपेक्षा सहकर भी जो
जंगली बेल की तरह फैलती रही
प्यार पाकर और लहरायेगी।

घर की रौनक है बेटी
उसके पैदा होने पर उत्सव मनेगा तो
घर का गौरव और बढ़ाएगी।

रचयिता
जयमाला देवलाल,
रा0 कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय डाबरी,
विकास खण्ड-मूनाकोट,
जनपद-पिथौरागढ़,
उत्तराखण्ड।

Comments

  1. बहुत सुन्दर रचना....👍👍👍

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