मैं और तू संवाद

मैं(अहंकार) और तू (आत्मा) संवाद

तू शीतल सागर लहर
कठोर चट्टान सा अडिग अमर मैं
रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों की
घटनाओं का रहा कारण मैं

ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, शूद्र
नतमस्तक रहें आगे मेरे
सम्पन्नता देखकर तेरी
व्याप्त रहूँगा मैं घेरे

देव नहीं मिटा पाए मेरा अस्तित्व
हर लूँगा मैं तेरा व्यक्तित्व
मैं रहूँगा नित तेरे सम्मुख
तू करके दिखा मुझे विमुख

ईश्वर झुका है आगे मेरे
हर युग, हर पल, हर क्षण
रुप हो चाहे मानव मेरा
या हो मिट्टी का कोई कण

रखता हूँ मैं वह अपार ऊर्जा
आना पड़ा देवों को भी पृथ्वी
किया प्रयत्न दमन का मेरे
हूँ कलयुग का राजा अब भी

रचयिता
प्रतिभा चौहान,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय गोपालपुर,
विकास खंड-डिलारी,
जनपद-मुरादाबाद।

Comments

  1. कविता बिल्कुल भी अच्छी नहीं है शुरुआत की पंक्तियों में ही तुक नहीं मिल सका तो सोचा कि शायद यह एक मुक्तक हो लेकिन फिर पाया कि मेरे का तुक घेरे से मिलाने का प्रयास उस ही तरह किया गया है जैसे कण को क्षण से मिलाने का प्रयास किया है अतः कविता को एक अच्छी कविता के रूप में गढ़ने का प्रयास तो किया गया किन्तु कवयित्री के रूप में आप सफल नहीं हो सकी हैं

    यदि आप केवल प्रशंसा सुनने की ही आदी नहीं हैं तो मेरी सलाह है कि आप अपनी कविताओं को थोड़ा समय और दें

    प्रशंसनीय है कि आप ने इतने गूढ़ विषय पर कुछ रचने का प्रयास किया है

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. जी सर सीख रही हूं कोशिश करूंगी आगे और भी अच्छा लिखूं,सलाह के लिए धन्यवाद

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