दीप

दीप तुम पृथक कहाँ हो मेरे अस्तित्व से।   
   प्रतिपल जलती ज्योति तुम्हारी       
परिलक्षित होती जो मेरे अंतर्मन से छनकर।           
   गहन रात्रि में, सूने पथ पर दिखलाते हो राह पथिक को
प्रतिफल उसकी आशा बनकर।
   दीप्ति ज्ञान की देना चाहूँ, वैसे ही मैं  जनमानस को,
बनकर दीप तुम्हारी अनुचर।
   दीप तुम्हारी अनुगामी हूँ, माँगूँ ईश्वर से इतना ही।   
कर्म करूँ निर्लिप्त भाव से आशा और निराशा तजकर।     

रचयिता
शालपर्णी,
सहायक अध्यापक,
मॉडल प्राथमिक विद्यालय सरवनखेड़ा,
विकास खण्ड-सरवनखेड़ा,
जनपद-कानपुर देहात।

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