लो आ गया बसंत

 लो आ गया बसंत
ओढ़कर चूनर पीली-पीली
 धरती भी हो गयी खिली-खिली
लो आ गया बसंत....
हुई हवा गुनगुनी, ठंड गुलाबी
सूरज की हर किरण लगी सुहानी....
जगह-जगह हो गयी फुलवारी
लो आ गया बसंत...
भँवरों की गूँजी गुनगुन
तितलियाँ डोलीं इधर-उधर
खो गयी फूलों के भीतर
लो आ गया बसंत....
चारों तरफ उड़ रही पतंग
फूलों की खुशबू लहराकर
खुशियाँ लेकर आई अनंत
लो आ गया बसंत...
इठलाकर. बल खाकर
दिशाएँ गीत सुनाकर
बसंत ऋतु का करें गुणगान
लो आ गया बसंत...
इसी दिन से होली गीत की
ब्रज में होती शुरुआत
और गाए जाते हैं मल्हार
लो आ गया बसंत...

रचयिता
अरूणा कुमारी राजपूत,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय राजपुर(अंग्रेजी़ माध्यम),
विकास खण्ड-सिंभावली, 
जिला-हापुड़।

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