जले दिये हैं

हमारे  मन के  जले  दिये  हैं।
उजाले  जिनके  घने  हुए  हैं।

बनी है जैसे भावों की  माला,
दिखाए जिसका मुझे उजाला।
जिधर भी  देखा  वही दिखाए,
दृगों  में मेरी  चमकता   जाए।
विचार अप्रतिम  उतर  रहे  हैं।
हमारे  मन  के  जले  दिये  हैं।

हमें तो भाता  प्रकाश  अनुपम,
सुनाई  देती  वीणा सी सरगम।
आत्म  मेरा  खिला  तुम्हीं  से,
जीवंत जीवन हुआ  तुम्हीं  से।
नियति ने सपने  नवल  दिए हैं,
हमारे  मन  के  जले  दिये  हैं।

दरश तुम्हारे हृदय में क्षण क्षण,
सरस मधुर  सा हुआ  समर्पण।
तुम्हीं तो  प्यारे जगत से  न्यारे,
तुम्हीं हो  बनकर चमकते तारे।
सुनहरे  पथ  अब  बने  नये हैं।
हमारे  मन  के  जले  दिये  हैं।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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