बुद्ध पूर्णिमा

बुद्ध पूर्णिमा ही बुद्ध जयंती,
भगवान बुद्ध की याद में है आती।
वैसाख में पूर्णिमा की रात है आती,
इसीलिए बुद्ध पूर्णिमा कहलाती।

अप्रैल या मई में प्रतिवर्ष मनाते,
देश, विदेश में हैं खूब मनाते।
भगवान बुद्ध, बौद्ध धर्म के,
संस्थापक हैं कहलाते।

बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में हुआ,
राजा शुद्धोधन के घर में हुआ।
बचपन का नाम सिद्धार्थ गौतम पड़ा,
कभी न दुःख से पाला पड़ा।

16 वर्ष में विवाह किया,
सुंदर सा एक बेटा हुआ।
जीवन में फिर एक मोड़ आया,
जब सिद्धार्थ 25 वर्ष का हुआ।

पहली बार जो महल से बाहर निकले,
कितने ही दुःख आँखों के आगे से निकले।
वृद्धावस्था, बीमारी, मृत्यु को देखा,
करुणा से उनका दिल पसीजा।

ज्ञान की खोज में निकल पड़े,
पत्नी, बेटा, महल सब छोड़ चले।
कई जगह घूमकर बोधगया पहुँचे,
पीपल के पेड़ के नीचे बैठे।

40 दिन लगातार ध्यान किया,
निर्वाण की स्थिति को प्राप्त किया।
यही वो स्थान जहाँ ज्ञान प्राप्त किया,
फिर सारी दुनिया में ज्ञान बाँट दिया।

पूरी दुनिया के बौद्ध भक्त,
करने आते श्रद्धांजलि अर्पित।
मंदिरों को सजाया जाता,
रोशनी, दियों से सजाया जाता।

'पीपल का पेड़' पवित्र पेड़ कहलाता,
अंजीर के नाम से भी जाना जाता।
बौद्ध धर्म की प्राथमिक शिक्षाएँ,
चार मुक्त सत्य, आठवें पथ अवधारणाएँ।

इन्ही शिक्षाओं में संसार समाया,
सारी दुनिया को भी जीना सिखाया।
सभी देशवासियों का नमन,
शीश झुका करते हैं नमन।

रचयिता
रीना सैनी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय गिदहा,
विकास खण्ड-सदर,
जनपद -महाराजगंज।

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