तपती धरती

तपती धरती, आग बरसती।
सूरज की ये, धूप बरसती।
जैसे देखो पवन भी डरती।
गरम-गरम है लू भी चलती।
तिनका-तिनका सूख रहा है,
जल बिन जीना व्यर्थ हुआ है।
तपन तपाने अब तो आई,
सूखी जैसे है तरुणाई।

सुखकर छाया बड़ी सुहानी,
सुखमय देखो ठण्डा पानी।
तन पर टपके तन का पानी,
याद हुई है सबकी नानी।
बाहर जाना हुआ है मुश्किल,
फिर भी चलना अपनी मंजिल।

पथ पर चलते बचकर चलते,
बहुत तपन है सबसे कहते।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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