शहर और गाँव

मम्मी मैं जब शहर गया
देख के सब कुछ डर गया
इतनी भीड़ भरी थीं सड़कें
पार करूँ कैसे? जी है धड़के
शोर पी पी पों पों का था
हवा में जैसे ज़हर भरा था
बड़ी थी गाडी बड़े मकान
पर दिल के छोटे थे इंसान
कोई ना पूछे किसी का हाल
अपनी धुन सब अपनी चाल
सबमें जैसे होड़ लगी है
घोड़ों जैसी दौड़ लगी है
माँ मेरे जैसे छोटे बच्चे
घर में बैठे थे सब छुपके
उन्हें टीवी, वीडियो गेम है भाता
कोई ना बाहर खेलने आता
अजब-गजब सब ढंग वहाँ के
कैसे-कैसे रंग वहाँ के
मम्मी मुझको गाँव है प्यारा
मैं हूँ सबका यहाँ दुलारा
लाड़ प्यार सब करते हैं
जामुन से जेबें भरते हैं
यहाँ दोस्तों की टोली है
हर दिन प्यार की होली है
यहाँ दादी नानी की कहानी है
हामिद की प्यारी बकरी है
तो मेरी बिल्ली सयानी है
यहाँ ठंडी हवा के झोंके हैं
यहाँ खेल से कोई ना रोके है
माँ बिजली, मोटर सब है यहाँ
मेरे गाँव में भला कमी ही क्या
अस्पताल और स्कूल भी हैं
सब स्वास्थ्य रहें और सब पढ़ें
फिर क्यों मैं शहर को जाऊँ
क्यों ना गाँव को स्वर्ग बनाऊँ

रचयिता
जैतून जिया,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय गाजू,
विकास खण्ड-कछौना,
जनपद-हरदोई।

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