नायक बन जाऊँ

तकदीरें मेरी कोरा कागज
फूलों सी कोमल  काया है
भाग्य हमारा बन जाएगा
यदि आपकी मुझ पर छाया है
सिसक रहा है बचपन मेरा
खेतों और खलिहानों में
ए बी सी डी सीख रहा हूँ
अंधेरों और वीरानों में
बढ़ा है मुझ पर काम का बोझ
पर छोटी मेरी हस्ती है
भूल जाता हूँ पढ़ना लिखना
मुझमें भी थोड़ी मस्ती है
तौलेंगे गर आप मुझे यदि
सुंदर से पैमानों में
मैं भी बेशक डट जाऊँगा
कल दुनिया के मैदानों में
अक्षर व मात्राओं से अब तक
अकेले ही मैं जूझ रहा हूँ
गिनती और सवालों को भी
मैं खुद से ही बूझ रहा हूँ
गुजर रहा है जीवन मेरा
दो वक्त की रोटी कमाने में
माता-पिता भी बेबस बेकस
बस उलझे हैं इस फसाने में
करबद्ध निवेदन करता हूँ
सपनों का आधार बनें
ठहरी हुई छोटी नैया की
एक मजबूत पतवार बनें
मिल जाए यदि कृपा दृष्टि
मैं भी अब लायक बन जाऊँ
दे शुभाशीष मुझको गुरुवर
इस धरा का नायक बन जाऊँ

रचयिता 
प्रवीन कुमार सिंह,
प्राथमिक विद्यालय सुग्गानगर, 
विकास खण्ड-विशेश्वरगंज,
जनपद-बहराइच।

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