बेटियाँ

प्रभु का वरदान..
मेरी आन मेरी पहचान..
मेरी खुशी और यशी...
माँ बनकर जाना, माँ क्या होती है...
और जाना...
माँ का प्यार....
क्यों डाँटती थी माँ...
हर बात पे टोकना...
ऐसे करो ऐसे न करो...
हर बात पे समझाना...
अब मैं माँ हूँ...
कोशिश करती हूँ अपनी माँ जैसी बन पाऊँ..
ढेर सारा प्यार और संस्कार दे पाऊँ...
ज़िंदगी के हर मोड़ पे जीत जाओ तुम दोनों...
ऐसा कुछ कर पाऊँ...
जो अच्छा हो वो सब कर पाओ....
जो बुरा हो उससे बचती जाओ...
सदा खुश रहो और खुशियाँ बिखेरो...
दुनिया में तुम सा कोई नहीं है...
इसका एहसास दिला पाऊँ...
बस इतना समझ लो बेटा जी...
मेरा तो अभिमान हो तुम दोनों....

रचयिता
अनीता शुक्ला,
प्राथमिक विद्यालय रुस्तमपुर,
विकास खण्ड-चिरईगाँव, 
जनपद-वाराणसी।

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